इ क्रिकिट माया ……!
आज फिर रतनलालजी परेशान हो गये।
बोले, “मुझे भी क्रिकेटर बनना है।”
मैने समझाया भाई हम जैसै कामकाजियों के पास इतनी फुर्सत कहाँ कि नून रोटी का चिन्तन छोड़ बल्ला भाँजने चलें।
भाई बडी मेहनत है, बडी प्रैक्टिस की जरूरत है।
अपनी लाल लाल आँखे मटकाते हुये रतन लाल जी बोले, “ससुरा हमको का लोला समझा है। अबे ससुरे जीरो पे आऊट होने का कौन पिरेकटिस चाहिए बे घामड…।”
अब हम का बोलते।
प्रकाश
हा हा हा …. बढ़िया।