हास्य व्यंग्य

इ क्रिकिट माया ……!

आज फिर रतनलालजी परेशान हो गये।
बोले, “मुझे भी क्रिकेटर बनना है।”
मैने समझाया भाई हम जैसै कामकाजियों के पास इतनी फुर्सत कहाँ कि नून रोटी का चिन्तन छोड़ बल्ला भाँजने चलें।
भाई बडी मेहनत है, बडी प्रैक्टिस की जरूरत है।
अपनी लाल लाल आँखे मटकाते हुये रतन लाल जी बोले, “ससुरा हमको का लोला समझा है। अबे ससुरे जीरो पे आऊट होने का कौन पिरेकटिस चाहिए बे घामड…।”
अब हम का बोलते।
प्रकाश

सूर्य प्रकाश मिश्र

स्थान - गोरखपुर प्रकाशित रचनाएँ --रचनाकार ,पुष्प वाटिका मासिक पत्रिका आदि पत्रिकाओं में कविताएँ और लेख प्रकाशित लिखना खुद को सुकून देना जैसा है l भावनाएं बेबस करती हैं लिखने को !! संपर्क [email protected]

One thought on “इ क्रिकिट माया ……!

  • विजय कुमार सिंघल

    हा हा हा …. बढ़िया।

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