ग़ज़ल/ तके है राह ये किसकी नज़र हर शाम से पहले
तके है राह ये किसकी नज़र हर शाम से पहले
बचाने लाज आया कौन आखिर श्याम से पहले
सितम हर एक सह लेंगे मगर तुम याद ये रखना
तुम्हारा नाम लेंगे लोग मेरे नाम से पहले
बुझाने प्यास को अपनी परिंदा इक भटकता है
कुआँ औ ताल सूखे हैं यहाँ पर घाम से पहले
नज़र में छवि तुम्हारी है, तुम्हारा ख्याल हरदम है
तुम्हारा ज़िक्र होता है मेरे हर जाम से पहले
किसे अपना कहें, किसको पराया हम समझ लें अब
नहीं होती असल पहचान अब अंजाम से पहले
– बृजेश नीरज
बहुत सुंदर ग़ज़ल !
ग़ज़ल अच्छी लगी , बहुत खूब .