ग़ज़ल
चलो उनसे सलाम हो जाए ।
इस तरह इंतकाम हो जाए ।।
चाँद से डर था बेवफाई का ।
उसका किस्सा तमाम हो जाये ।।
बहुत लम्बी है दास्तां तेरी ।
कुछ अधूरा कलाम हो जाए ।।
बे वजह जिद है रूठ जाने की ।
अब तेरा इंतजाम हो जाए ।
टूट के गिरना ही उसकी फितरत ।
बेवफा उसका नाम हो जाए ।।
बड़ी सहमी अदा तबस्सुम की ।
कत्ल की एक शाम हो जाए।।
नवीन
वाह वाह !
बहुत सुन्दर
वाह किया ग़ज़ल लिखी है , मज़ा आ गिया.