बैसाखी
रोहित बैसाखी के सहारे चलता हुआ कुर्सी के पास पहुँचा | एक हाथ की बैसाखी दूसरे हाथ से थाम ली और कुर्सी को खिसकाते हुए उस पर बैठ गया | उसने अपने दोनो बैसाखी नीचे रखते हुए अपने मित्रों से कहा,
‘’ बैठो दोस्तों, शहर में इससे अच्छा और कोई होटल नहीं है | तुम्हे जो चाहिए, वह सब यहाँ मिलेगा | खासकर मच्छली और हांडी बिर्यानी | ‘’
‘’ हां यार, हमें बड़ी बेसब्री से इंतजार रहेगा | भूख जो लगी है |’’
कहते हुए, उसके मित्र भी टेबल के चहू ओर रखी हुई कुर्सियों पर बैठ गये |
कुछ देर शांत रहने के बाद सालों बाद मिलने आये मित्रों से रोहित ने कहा,
‘’ दोस्तों, ४० लाख का होटल और शॉप बिना किसी मदद के मैंने अपने बल बूते पर खड़ा किया हैं | पिताजी रिटायर्ड होने पर एक लाख का पेंशन मिला था | उन्होंने एक बिजनस में लगया पर सामने वाले ने धोका दे दिया | फिर भी हमने हिम्मत नहीं हारी थी | शुरुवाती दौर में बहुत कठिन स्थितियों से गुजरना पड़ा था | मैं डॉक्टर के पास विकलांग का प्रमाणपत्र लेने के लिए गया था | उन्होंने प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया , कहा जबतक ५० रु. नहीं दोगे, तब तक मैं हस्ताक्षर नहीं करूंगा |’’
वह अपनी दिल की बात सिलसिलेवार ढंग से एक के बाद एक सुनाये जा रहा था | किस तरह उसने पचास रूपये देने से इनकार किया और किस तरह डॉक्टर को प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े थे | रोहित अस्सी प्रतिशत तक विकलांग था | फिर भी उसे पचास प्रतिशत का ही प्रमाणपत्र दिया गया था | रोहित ने उसे स्वीकार कर लिया था | क्योंकि किसी भी सुविधा के लिए कम से कम पैंतालिस प्रतिशत विकलांग की आवश्यकता थी | सो वह मान गया था | रोहित दोनों पैरों से विकलांग था | उसने एसटीडी बूथ से शुरवात की थी | जो अब एक होटल और शॉप का मालिक बन गया था | यहाँ भी उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था | ख़ास कर स्थानीय विधायकों से ..| फिर भी उसने हार नहीं मानी थी |
रोहित कह रहा था कि उसके स्थान पर कोई और होता तो वह आत्महत्या कर लेता | उसने दिमाग में गाँठ बांध ली थी कि ‘’ मैं शरीर से विकलांग हूँ, पर दिमाग से नहीं | लोग शरीर से स्वस्थ होते है, पर दिमाग से विकलांग | उन्हें दिमागी बैसाखी की जरूत पड़ती है | और मुझे …’’ वह स्वस्थ व्यक्तियों से अपने आप को बेहतर समझता था | क्योंकि उसने देखा था | स्वस्थ व्यक्तियों को विपरीत परिस्थियों से हार मान कर घर बैठते हुए या आत्महत्या करते हुए |
रोहित के संघर्ष और सफलता से सभी मित्र अवाक् थे | वह अब दूसरों का मददगार बन गया था | उसने कायदे-कानून की बातें अच्छी तरह से सिख ली थी | पुस्तक प्रेम ने उसे मजबूत बना दिया था | उसने एक स्त्री जो प्रधानाध्यापक पद के योग्य थी किन्तु षड्यंत्र से उसे नहीं लिया गया था | रोहित ने सूचना के अधिकार से सामने वाले के छक्के छुडा दिए थे | उसने कॉलेज जीवन में भी धड़ल्ले से नेतृत्व किया था | भोजन आया, सभी ने भोजन किया | पर रोहित की भोजन की मात्रा सीमित थी | जहाँ सभी ने पेट भर खाया था | वहीँ उसने आधा पेट भी भोजन नहीं किया था | रोहित से पूछने पर वह बता रहा था कि उसने घर पर भोजन कर लिया है | इसीलिए कम भोजन कर रहा है | भोजन सभी को अच्छा लगा | सभी ने जमकर तारीफ की थी | जब दोस्तों में से एक दोस्त ने अपने हाथ धोयें और पेट पर हाथ घुमाते हुए बाहर टहलने लगा | तब ऐसे ही रोहित भीतर ही भीतर सोचने लगा |
‘’ काश मेरे भी पैर ठीक होते, तो मैं भी ऐसे ही टहलता | मैं भी पेट भर खाना खा सकता |’’
पर उसने अपनी विवशता को अपने दोस्तों के सामने उजागर नहीं किया था | वैसे वह था ही, शरीर से विकलांग पर दिमाग से स्वस्थ |
डॉ.सुनील जाधव
अच्छी प्रेरक कहानी.