कविता

माँ की आंखें

कितनी गहराई से

भेदती हैं

मां की आंखें

मानो हो खुर्द्बीन

लाख छुपाओ

छुपती नहीं

माँ पढ लेती है

हमारे दुख और आंसू—–

गहरे प्रेम और समर्पण का

प्रतिफल है कि

दर्द में भी

भावनाओं और जज़्बातों की

चाशनी से तर

मां के स्पर्श से

हमें मीठी नींद आ जाती

संभव नहीं

किसी प्रयोगशाला में

विभिन्न रसायनों से

इसे तैयार किया जाना

ना ही बाजार से

खरीदा जाना

इसलिए जब कभी कोई

दुख या गहरा अवसाद घेरता

हम अनायास ही पुकारते हैं —- माँ !!!

— भावना सिन्हा !!

 

 

 

डॉ. भावना सिन्हा

जन्म तिथि----19 जुलाई शिक्षा---पी एच डी अर्थशास्त्र

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