उपन्यास अंश

यशोदानंदन-36

आश्चर्य! घोर आश्चर्य!! सात वर्ष का बालक गोवर्धन जैसे महापर्वत को अपनी ऊंगली पर सात दिनों तक धारण किए रहा। विस्मय से सबके नेत्र विस्फारित थे। सभी एक-दूसरे को प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रहे थे, पर थे सभी अनुत्तरित। जिज्ञासा चैन से बैठने कहां दे रही थी। नन्द बाबा के अतिरिक्त किसमें सामर्थ्य थी जो वृजवासियों की उलझन सुलझा पाए। उधर माता यशोदा भी व्रज की गोपियों से घिरी थीं। सबके अधरों पर एक ही प्रश्न था – तुम्हारा बालक यथार्थ में क्या है? मानव है, देव है या कुछ और है? सात वर्षों के अल्प वय में इसने जो किया है, वह कोई मानव तो नहीं कर सकता। इस नन्हें से बालक ने एक ही हाथ से गिरिराज गोवर्धन को उखाड़ लिया और सात दिनों तक अपनी ऊंगली पर धारण किए रहा। यह साधारण मनुष्य के लिए भला कहां संभव है?

जब यह नन्हा-सा शिशु था, उस समय भी इसने चमत्कार किया था। भयंकर राक्षसी पूतना आई तो थी उसका प्राण लेने, परन्तु अपने ही प्राण गंवा बैठी। इसने बवंडर के रूप में आए तृणावर्त दैत्य का वध किया। बकासुर, धेनकासुर आदि कितने दैत्यों को इसने खेल-खेल में ही मृत्युदान दिया। कालिया नाग से समस्त वृजवासी कितने आतंकित थे। इस बालक ने उसका भी मानमर्दन किया। उसे दह से निष्कासित कर यमुना के जल को सदा के लिए विषरहित बना दिया। तुम्हारे इस सांवले-सलोने बालक को व्रज के समस्त नर-नारी और गोप-गोपियां अनन्त स्नेह एवं प्रेम करते हैं। तुम्हारा यह बालक सामान्य बालक नहीं है। हम जितना ही इसके विषय में चिन्तन करते हैं, हमारी उलझनें उतनी ही बढ़ती जाती हैं। अब तुम्हीं बताओ – तुम्हारा यह बालक है कौन? मनुष्य है या साक्षात ईश्वर का अवतार? तुम इसकी जननी हो। इसके सारे रहस्य तुम्हें ज्ञात होंगें। हमारी शंका का समाधान करो।”

माता यशोदा गोपियों की बात सुन मंद-मंद मुस्कुराईं और ऊंचे स्वर में श्रीकृष्ण को संबोधित कर बुलाया। पश्चात्‌ अपने सामने खड़ा करके प्रश्न पूछा –

“मेरे कन्हैया! मेरे पुत्र! तेरी अलौकिक क्रीड़ाओं से समस्त व्रजवासियों के मन में एकसाथ असंख्य प्रश्न घर कर गए हैं। सभी तेरा वास्तविक परिचय जानने को उत्सुक हैं। तू ही बता कि तू मानव है, अति मानव है या ईश्वर का साक्षात अवतार? तेरी इन नन्हीं भुजाओं में इतना बल कहां से आ गया कि तूने महापर्वत गोवर्धन को अपनी ऊंगली पर ऊठाकर सात दिनों तक धारण किए रखा? ऐसा करते समय क्या तेरी कोमल भुजायें दुखी नहीं?”

श्रीकृष्ण ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए उत्तर दिया –

“मैया! मैंने अकेले गोवर्धन को कहां उठाया? सारे ग्वाल-बालों ने अपनी पूरी शक्ति से अपनी-अपनी लकुटियों के सहारे गोवर्धन को टिकाए रखा था। और फिर नन्द बाबा भी तो अपने समस्त मित्रों के साथ पर्वत को टेके हुए थे। अरी मैया! यह गोवर्धन पर्वत तो इतना विशाल और भारी है कि क्या वह मुझसे अकेले उठाया जा सकता था? इस कार्य में व्रज के समस्त ग्वाल-बालों और गोपों ने पूरी शक्ति से मेरी सहायता की थी। मैं कोई ईश्वर नहीं हूँ। मैं तो तुम्हारा पुत्र कन्हैया हूँ। ये गोपियां सदैव मेरी शिकायत लेकर तुम्हारे पास पहुंच जाती हैं। पहले माखन-चोरी का दोष मेरे सिर मढ़ती थीं, अब ईश्वर होने का प्रचार कर रही हैं। अगर इन्हें मेरी इतनी ही चिन्ता है, तो बिना मांगे मुझे और मेरे ग्वाल-बालों को माखन क्यों नहीं खिलातीं? तुम इनकी बातों से भ्रमित मत होना। मैं तुम्हारा पुत्र हूँ और तू मेरी माँ है। बस इतना ही सत्य है। तू इन्हें समझा दे – ये मेरी चुगली न किया करें।”

श्रीकृष्ण ने एक छ्लांग लगाई और द्वार से बाहर निकल गए। माता यशोदा और समस्त गोपियां विस्मय से सारा दृश्य देखती रहीं।

बाहर नन्द बाबा को घेरकर सभी व्रजवासी भी यही प्रश्न पूछ रहे थे। नन्द जी ने सबकी शंका का समाधान किया –

“मित्रो! श्रीकृष्ण के जन्म के पश्चात्‌ महर्षि गर्ग ने मुझे अत्यन्त गोपनीय रहस्य से अवगत कराया था। आजतक उस रहस्य को मैंने अपने तक ही सीमित रखा था। लेकिन मैं समझता हूँ कि उसे सार्वजनिक करने का समय अब उपस्थित हो चुका है। यह बालक नारायण का अंश है। धर्म की स्थापना हेतु यह प्रत्येक युग में शरीर ग्रहण करता है। विभिन्न युगों में इसने श्वेत, रक्त, पीत जैसे भिन्न-भिन्न रंग स्वीकार किए थे। इस बार यह कृष्ण-वर्ण हुआ है। यह समस्त सृष्टि का कल्याण करेगा। समस्त गोपों और गौवों को अतीव आनन्द प्रदान करेगा। इसकी सहायता से तुमलोग बड़ी से बड़ी विपत्ति को सुगमता से पार कर लोगे। जो इस सांवले बालक से प्यार करेंगे, वे अत्यन्त भाग्यशाली सिद्ध होंगे। गुण, ऐश्वर्य, सौन्दर्य, कीर्ति और प्रभाव से यह बालक स्वयं नारायण के समान है। अतः इस बालक के अलौकिक कार्यों को देखकर कभी आश्चर्य मत करना।”

सभी व्रजवासी विस्मय से नन्द बाबा का मुख देखते रहे। उनके सारे संदेह दूर हो चुके थे, समस्त शंकायें समाप्त हो चुकी थीं। अमिट तेजस्वी श्रीकृष्ण के अलौकिक कृत्य को वे कई बार देख चुके थे। आज कारण ज्ञात होने के बाद वे आनन्दविभोर थे। भक्तिभाव से श्रीकृष्ण की प्रशंसा करते हुए सभी ने पूर्ण संतुष्टि के साथ अपने-अपने घरों के लिए प्रस्थान किया।

 

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.