काश्मीरी पंडितो की उम्मीद पर गठबंधन सरकार
पाकिस्तान की सोची समझी नीति का नतीजा ही है की पिछले कुछ दसकों से कश्मीर में क्रूरतम नर संहार का सिलसिला जो शुरू हुआ था वह आज तक पूरी तरह से थमा नहीं है । निर्दोष लोगों की हत्यायें, संस्कृति का तालिबानी कारण, साम्प्रदायिकता का वर्चस्व , राष्ट्र भावना का अभाव सब कुछ सुलभता से देखा जा सकता है । आतंकवाद और पाकिस्तान का समर्थन वहां राजनीतिक मुद्दे की शक्ल अख्तियार कर लेता है ।
आज कश्मीरी पंडितो के साथ जो अत्याचार हो चुका है भारत का लोकतन्त्र भी मौन नजर आता है । उनकी निर्ममता से हत्याए की गयीं थी बहू बेटियो को अपमानित किया गया उनके घर मकान व सम्पत्तियो पर कब्जा हुआ । वे वहां से भगा दिए गए देश के और देश के अन्य राज्यों के फुटपाथों पर नजर आए। आज तक भारत की संवैधानिक सरकारो ने इन्हें न्याय दिलाना तो दूर इच्छा शक्ति का प्रदर्शन तक नहीं कर सकीं । वे आज भी खाना बदोश और दोयम दर्जे की नागरिकता के साथ नजर आते हैं और देश का संविधान सिर्फ मौन द्रष्टा बनकर देखता आया है । भारतीय जनता पार्टी और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने मिलकर कश्मीर सत्ता की बागडोर संभाल ली है । एक उम्मीद बनी कि शायद कश्मीरी पण्डितों के साथ न्याय हो जाए परंतु ये दोनों पार्टियां एक दुसरे की विपरीत धाराएं हैं । इन दोनों का मिलजुल कर सरकार बनाना और चलाना बेहद टेढ़ी खीर है. लेकिन दोनों ही भरसक इस कोशिश में हैं कि किसी तरह वे इस कठिन काम को अंजाम देने में सफल हो जाएं. बेर-केर के संग को बनाए रखने की यह कोशिश किस हद तक और कब तक सफल सिद्ध होगी, कहना मुश्किल है. जहां पीडीपी और उसके नेता एवं जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का सवाल है, उनकी राजनीतिक लाइन को नर्म अलगाववादी कहा जा सकता है जबकि बीजेपी की लाइन उग्र हिन्दू राष्ट्रवाद की है।
सूत्र स्पष्ट करते हैं कि कम से कम एक साल तक पीडीपी मोदी सरकार में शामिल नहीं होगी, क्योंकि समझौते के मुताबिक पहले राज्य में दोनों पार्टियां साथ काम करना चाहती हैं। बीजेपी पीडीपी गठबंधन में अहम भूमिका निभाने वाले बीजेपी महासचिव राम माधव जी का कहना है कि अगर राजनीतिक समझौता होता तो अभी तक पीडीपी मोदी सरकार का हिस्सा बन जाती। उन्होंने कहा कि पीडीपी से हमारा गठबंधन राजनीतिक नहीं है। अगर होता तो अभी तक पीडीपी एनडीए का हिस्सा बन जाती। कल या एक साल बाद क्या होगा ये मैं नहीं जानता, मगर पीडीपी से हमारा गठबंधन शासन के लिए है।
पीडीपी से गठबंधन को लेकर राम माधव ने बेंगलुरू में हुई बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक मे विस्तार से बातें रखी हैं। दरअसल, मुफ्ती मोहम्मद सईद के बयानों और मसर्रत आलम की रिहाई से बीजेपी और संघ परिवार के एक हिस्से में इस गठबंधन को लेकर बहुत नाराजगी रही है। लेकिन माधव ने बताया कि दोनों पार्टियां का साथ आना क्यों जरूरी था। उन्होंने ये भी साफ किया कि बीजेपी देश के हितों से कोई समझौता नहीं होने देगी।
जम्मू-कश्मीर पर आयोजित एक सेमिनार में राम माधव ने कहा कि “मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि जब तक बीजेपी इस सरकार का हिस्सा है राष्ट्रहितों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाने दिया जाएगा।” कार्यकारिणी को उन्होंने ये भी बताया कि धारा 370, अफस्पा और हुर्रियत से बातचीत जैसे मुद्दों पर बीजेपी अपने पुराने रुख पर ही कायम है। उन्होंने कहा कि बीजेपी शुरू से ही धारा 370 को खत्म करने पक्ष में रही है। जबकि पीडीपी चाहती है कि ये बनी रहे और साथ ही वो राज्य के लिए अधिक स्वायत्तता की वकालत भी करती है। इन मुद्दों पर दोनों की ही राय अलग-अलग है। लेकिन ये मुद्दा राज्य सरकार को नहीं बल्कि केंद्र सरकार को तय करना है। हमने मौजूदा स्थिति बनाए रखने का निर्णय लिया गया।
खास बात ये है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को लेकर भी दोनों की राय अलग है। हमें लगता है कि ये लोगों की सुरक्षा के लिए जरूरी है। दोनों पार्टियों में अपने रुख पर समझौता किए बगैर ये सहमति बनी कि इसे कुछ क्षेत्रों से हटाया नहीं जाएगा बल्कि इसकी समीक्षा की जाएगी। इस बारे में अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करना है इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है।
माधव जी के अनुसार कई मुद्दों पर अलग-अलग राय के बावजूद सरकार में काम न्यूनतम साझा कार्यक्रम के हिसाब से ही होगा। राम माधव ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की सरकार कोई अलग सरकार नहीं है बल्कि भारत के किसी अन्य राज्य की सरकार जैसी ही है। उनके मुताबिक जम्मू-कश्मीर सरकार को पाकिस्तान या अंतरराष्ट्रीय संदर्भ से देखने की वजह से ही दिक्कतें पैदा होती हैं और अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा मिलता है।
वित्तमंत्री अरुण जेटली के मुताबिक पार्टी कार्यकारिणी के तमाम नेता राम माधव के प्रजेंटेशन से संतुष्ट हुए हैं। हालांकि ये तय है कि इस गठबंधन पर सबकी नजरें लगी रहेंगी और कोई छोटी सी चूक भी टकराव की वजह बन सकती है।
इधर नेशनल कन्फ्रेंस के नेता भी आफ़्सपा पर चुटकी लेने से बाज नहीं आए । ट्वीट में लिखा है कि “तो मुफ़्ती प्रधान मंत्री और गृह मंत्री को यह बताने के लिए दिल्ली दौड़े है कि अफ्सपा हटाने का उनका यह मतलब नहीं था ” । आतंकवादी हमले के दिन मुफ़्ती सरकार का यह कथन कि पिछले कुछ वर्ष से आतंकवाद मुक्त प्रदेश के कुछ हिस्सों से अफ्सपा हटाने का काम किया जाएगा ।
ऐसे में भारतीय जनता पार्टी का प्रयास रंग लाना प्रारम्भ कर दिया है । एक घोषणा के मुताबिक जम्मू काश्मीर की सरकार जल्द ही समग्र टाउनशिप के लिए जमीन अधिग्रहण करेगी और घाटी से विस्थापित पंडितों को उसे मुहैया कराएगी । मुफ़्ती की यह घोषणा राजनाथ सिंह की अपील के बाद आयी है। गृह मंत्री ने उमर अब्दुल्ला को इस सम्बन्ध में पत्र लिखा था । राज्यपाल बोहरा को विस्थापित परिवारों को चिन्हित करने का दयित्व पत्र में लिखा गया था ।
गौर तलब बात ये है कि भाजपा पी डी पी गठबंधन में बनी सरकार ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में कश्मीरी विस्थापितों का पुनर्वास शामिल कर लिया गया है।
— नवीन मणि त्रिपाठी
सिंघल साहब के विचारों से सहमत हूँ फिर भी सकारात्मक पहल की उम्मीद तो जगी है आगे तो उम्मीद पर दुनिया कायम है.
अच्छा लेख. नयी सरकार से नयी उम्मीदें होती ही हैं. इनमें से कितनी पूरी होती हैं यह देखने की बात है. मुझे तो कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की आशा बहुत कम है. जब तक आतंकवाद और आतंकवादियों का पूरा खात्मा नहीं होता, तब तक कोई कश्मीरी पंडित वहां रहने नहीं जायेगा. धरा ३७० के रहते उनकी सुरक्षा खतरे में ही रहेगी.