दुर्घटना ही नहीं रोडरेज से बचना भी ज़रूरी है
रोड रेज से बचने के लिए ज़रूरी है विशाल हृदयता व मानसिकता में सकारात्मक परिवर्तन
पाँच व छह अप्रैल 2015 की रात को दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके में रोड रेज में हुई हत्या हमारी संवेदनशीलता व कानून व्यवस्था दोनों पर प्रश्न चिह्न लगाती है। पिछले दिनों घटित कुछ घटनाएँ ज़ह्न में ताज़ा हो गईं। एक विवाह में शामिल हाने के बाद रात को घर लौट रहे थे। सड़कों पर भीड़-भाड़ भी नहीं थी। रास्ते में एक जगह पुलिस वाहनों की जाँच कर रही थी विशेष रूप से कमर्शियल वाहनों की। अचानक पुलिस के एक काॅन्स्टेबल ने हमारी गाड़ी से आगे चल रही गाड़ी को रुकने का इशारा किया। अगली गाड़ी के ड्राइवर ने गाड़ी को धीमा किये बग़ैर ही ज़ोर से ब्रेक मारकर गाड़ी वहीं की वहीं रोक दी। हमारी गाड़ी अगली गाड़ी से टकरा गई। गाड़ी मेरा बेटा चला रहा था। इसे एक दुर्घटना ही समझिए और इस दुर्घटना से दोनों ही गाड़ियों में थोड़ा-बहुत नुकसान भी हुआ। अगली गाड़ी में बैठे लोग उतरकर बाहर आए और हालात का जायज़ा लेने लगे।
सही अर्थों में वो लोग हालात की बजाए हमारा जायज़ा ले रहे थे कि हम कितने कमज़ोर या ताक़तवर हैं। हम सब भी गाड़ी से बाहर निकल आए। इससे पहले कि वो लोग कुछ कहते मैंने ही हाथ जोड़कर कहा, ‘‘भाई साहब ग़लती हमारी है।’’ और फिर पूछा कि किसी को कुछ चोट-वोट तो नहीं लगी? ‘‘चोट-वोट तो नहीं लगी लेकिन गाड़ी का तो कबाड़ा हो गया, ’’ एक सज्जन ने ज़रा बनावटी ग़ुस्सा प्रकट करते हुए कहा। ‘‘भाई साहब हमने कोई जान-पूछकर तो टकराई नहीं। आपने एकदम ज़ोर से ब्रेक मार दिये और हम संभल नहीं पाए। फिर भी हम अपनी ग़लती मान रहे हैं,’’ मैंने विनम्रतापूर्वक कहा। ‘‘ग़लती मान रहे हो तो इसका जो डैमेज हुआ है दे दो,’’ उन सज्जन ने बेरुख़ी से कहा।
जो व्यक्ति गाड़ी ड्राइव कर रहा था उसने गााड़ी का निरीक्षण करके कहा कि कम से कम दो हज़ार रुपये लगेंगे इसके डेंट ठीक करवाने में। हमारी गाड़ी ज़्यादा डैमेज हुई थी लेकिन उसमें उनका कोई दोष नहीं था। दूसरी गाड़ी एक बारह-पंद्रह साल पुरानी मारुती वैन थी जिसमें मुश्किल से दो सौ रुपये का डैमेज हुआ होगा। ‘‘वैसे गाड़ी तो हमारी भी डैमेज हुई है भाई साहब, ’’ मैंने पुनः अत्यंत विनम्रतापूर्वक कहा। ‘‘तो फिर ठीक है पुलिस को बुला लेते हैं,’’ भाई साहब ने कहा। भाई साहब कई बार पुलिस को बुलाने की धमकी दे चुके थे।
जिन की ग़फ़लत से ये दुर्घटना हुई थी उन्हें इससे कोई मत्लब नहीं था। वे अपनी कमर्शियल वाहनों की जाँच में मस्रूफ़ थे। इस दौरान मेरे छोटे भाई ने अपनी जेब से कुछ पैसे निकाले और उनके हवाले कर दिये। उन्होंने कहा कि इतने से क्या होगा? मेरे छोटे भाई ने कहा कि हम न तो आपको किसी तरह का हर्ज़ाना दे सकते हैं और न ही आपको जो कष्ट हुआ है उसकी क्षतिपूर्ति ही कर सकते हैं। बस असावधानीवश जो ग़लती हो गई है उसके लिए क्षमा कर दीजिए। ख़ैर मामला किसी तरह सुलट गया और हम सब सकुशल घर लौट आए।
दुर्घटना स्वाभाविक है लेकिन कभी-कभी इसके अत्यंत भयंकर परिणाम होते हैं। कई बार दुर्घटना में आर्थिक नुक़सान तो नाम मात्र का होता है लेकिन दुर्घटना के उपरांत सड़क पर उत्पन्न गुस्से अथवा रोड रेज के कारण स्थिति गंभीर और घातक हो जाती है। रोड रेज के कारण न जाने कितने लोगों को अपनी जान तक से हाथ धोना पड़ा है। गाली-गलौज और मार-पिटाई तो सामान्य सी बात है। अतः रोड रेज से बचाव बेहद ज़रूरी है। रोड रेज से बचने के लिए ज़रूरी हैः
- अत्यंत सावधानीपूर्वक गाड़ी चलाएँ।
- ट्रैफिक के नियमों का पालन करें।
- यदि दूसरे की ग़लती है तो भी उसे सामान्य रूप में लें।
- दुर्घटना की स्थिति में धैर्य न खोएँ।
- गाड़ी से ज़्यादा व्यक्ति की जान महत्त्वपूर्ण है। यदि किसी से आप की गाड़ी में नुक़सान हो भी गया है तो इसका ये अर्थ तो नहीं कि आप उसकी जान ही ले लें। वैसे भी किसी की जान लेने का क्या परिणाम होता है आप जानते ही होंगे।
- दुर्घटना की स्थिति में सबसे पहले ये देखें कि किसी को चोट तो नहीं लगी है। यदि किसी को चोट लगी है तो सबसे पहले उसकी चिकित्सा की ओर ध्यान दें।
- जो लोग आपसे आगे निकलना चाहते हैं उनको आगे जाने का रास्ता दे दें चाहे वे ग़लत ही क्यों न हों। इससे आप ज़्यादा सुरक्षित हो जाएँगे और तनावरहित होकर गाड़ी चला सकेंगे।
- हमारे यहाँ ट्रैफिक की हालत को देखते हुए गाडियों में खरोंच या छोटा-मोटा डेंट पड़ जाना स्वाभाविक है, इन छोटी-मोटी बातों की परवाह न करें।
- कई बार ग़लती हमारी ही होती है जिसकी वजह से हमारी गाड़ी क्षतिग्रस्त हो जाती है लेकिन फिर भी हम दोषारोपण दूसरों पर ही करते हैं जो सरासर ग़लत है।
- कई बार कुछ लोग किसी की ग़लती से हुई छोटी-मोटी खरोंच या डेंट के लिए न केवल दूसरे व्यक्ति को बुरा-भला कहते हैं अपितु क्षतिपूर्ति के रूप में हज़ारों रुपये की माँग भी करते हैं जो किसी भी तरह से उचित नहीं।
- कुछ लोग दूसरों से तो हर्ज़ाना ले लेते हैं लेकिन आप कभी किसी को एक पैसा भी नहीं देंगे इसके लिए चाहे उन्हें कितना ही गिड़गिड़ाना पड़े या नाक रगड़नी पड़े।
- कई बार किसी दुर्घटना में कोई भी स्पष्ट रूप से दोषी नहीं होता अतः एक दूसरे पर दोषारोपण करना बेमानी है।
- अपनी ग़लती है तो उसे स्वीकार करें। मामले को बातचीत द्वारा ही सुलझाने की कोशिश करें।
- ग़लती चाहे किसी की भी हो लेकिन किसी दुर्घटना के बाद यदि आप सही सलामत हैं तो क्या ये किसी क्षतिपूर्ति से कम है।
जिन लोगों में तनिक भी मानसिक धैर्य और आर्थिक बर्दाश्त का माद्दा नहीं है वे किसी भी तरह गाड़ी डिजर्व नहीं करते। ऐंठ नवाब की और औक़ात भिखारी की। हर चीज़ के साथ नफ़ा-नुक़्सान तो जुड़ा ही रहता है। गाड़ी चलाते हैं तो गाड़ी के अनुरूप औक़ात और स्टेटस भी ज़रूरी रखें।
एक पुरानी घटना याद आ रही है। मैं अपने एक मित्र के साथ पूना शहर से पूना एयरपोर्ट की तरफ जा रहा था। हम जिस आॅटो में बैठे थे वो जैसे ही एक कार की बराबर से गुज़रा कार का बंपर आॅटो में उलझकर अलग हो गया। कार ड्राइवर चला रहा था। ड्राइवर ने आॅटो रुकवा लिया और आॅटो वाले से नुक़सान के पैसे माँगने लगा। नुक़सान वास्तव में कुछ विशेष हुआ ही नहीं था। एक पुलिस वाले ने आकर कहा कि एक तरफ होकर अपना फैसला कर लो और कार व आॅटो दोनों को साइड में खड़ा करवा दिया।
हमें भी एयरपोर्ट पहुँचने की जल्दी थी। हम दूसरा आॅटो ले सकते थे लेकिन मैं आॅटो से उतरकर कार में बैठे कार के मालिक के पास गया और उससे कहा, ‘‘ सर हमें एयरपोर्ट पहुँचने की जल्दी है। आप आॅटो वाले को जाने दें तो बड़ी मेहरबानी होगी। वैसे भी आप बाहैसियत आदमी हैं आॅटो वाले से क्या सौ-पचास रुपये लेंगे।’’ उन सज्जन ने कहा, ‘‘ ठीक है आप लोग जाइये’’ और अपने ड्राइवर को बुला लिया।
आप सब महानुभाव जो ये लेख पढ़ रहे हैं निश्चित रूप से सकारात्मक दृष्टिकोण से सम्पन्न हैं और अपने व्यक्तित्व के निरंतर विकास के लिए प्रयत्नशील भी अतः आप न केवल रोडरेज की विभीषिका से स्वयं बचने का प्रयास करें अपितु अन्यत्र जहाँ भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई हो वहाँ भी ईमानदारी से मध्यस्थता करने का प्रयास करें ताकि कोई भयावह स्थिति उत्पन्न न हो। तटस्थ नहीं जिम्मेदार नागरिक ही प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी होता है।
— सीताराम गुप्ता
बहुत उपयोगी लेख. दुर्घटनाओं के मामलों में समझदारी से काम लेने की आवश्यकता होती है. अनावश्यक उत्तेजना से मामला बिगड़ जाता है.