पाक ग्रंथागार में संस्कृत-हिंदी की 8671 पांडुलिपि
धर्माचार्य और इतिहासवेत्ता जानते हैं कि पाकिस्तान के लाहौर शहर को भगवान राम के पुत्र लव ने बसाया था। वहां सनातन धर्मियों ने हजारों साल तक वैष्णव धर्म का झंडा फहराया। प्रमाण स्वरूप लाहौर के पंजाब विश्वविद्यालय में 8671 संस्कृत-हिंदी की पांडुलिपियां पुस्तकालय में आज भी सुरक्षित हैं। हालांकि यहां अरबी, फरसी, तुर्की, उर्दू और क्षेत्रीय भाषाओं की कुल बाइस हजार पांडुलिपियां रखी हैं।
यहां एक कार्यक्रम में आए काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी संस्कृत विभाग के शोध छात्र राजेश सरकार ने इस संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई हैं। वह बताते हैं कि तीन वर्ष पूर्व पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर के मुख्य पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. हारुन उस्मानी से संस्कृत पांडुलिपियों की सूची प्राप्त हुई। इससे उन्हें पता चला कि वहां संस्कृत-हिंदी की पांडुलिपियों का भंडार है। पौराणिक दृष्टि से माना जाता है कि यह नगर भगवान श्रीरामचंद्र के पुत्र लव ने बसाया था। लाहौर किले के अंदर उनका मंदिर है। लाहौर सांस्कृतिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
आज भी लाहौर में हिंदू, सिख, जैन संस्कृति के अवशेष दृष्टिगोचर होते हैं। इनमें गुरुद्वारा और पाठशालाएं भी हैं। आर्य समाज मंदिर, महादेव मंदिर, शीतला मंदिर, भैरव मंदिर, रावर रोड पर श्रीकृष्ण मंदिर, अकबरी मंदिर, दूधवाली माता मंदिर, महाराजा रणजीत सिंह समाधि, डेरा साहिब, प्रकाश स्थान श्री गुरु रामदासजी, जैन दिगंबर मंदिर भाभारियान, जैन श्वेतांबर मंदिर भाभारियान के अवशेष मौजूद हैं।
हिंदू, मुगल, सिख, पठान एवं ब्रिटिश साम्राज्य की मिश्रित संस्कृति वाला यह नगर कभी आर्य समाज का गढ़ रहा। यहां से संस्कृत ग्रंथ प्रकाशित हुआ और संस्कृत का प्रचार-प्रसार किया गया। संस्कृत और भारत विद्या का सुप्रसिद्ध प्रकाशन मोतीलाल बनारसी दास की स्थापना भी लाहौर में हुई।
लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज
लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुयायियों मुख्यतः पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी, महात्मा हंसराज, लाला लाजपतराय जी आदि ने मिलकर वर्ष 1882 ई. में की थी। ब्रिटिश सरकार ने उच्च शिक्षा के लिए 1882 ई. में लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसमें 1883 ई. में केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना की, जबकि यहां 45 अन्य पुस्तकालय हैं। पुस्तकालय में पांडुलिपि विभाग की स्थापना 31 जुलाई 1920 ई.में हुई। मान्यता देने के बाद लाइब्रेरी विश्वविद्यालय से संबद्ध कर दी गई।
लाहौर के इस पुस्तकालय की पुस्तकों और पांडुलिपियों का गहन शोध किया जाना चाहिए. पाकिस्तान सरकार से इसकी विशेष अनुमति लेकर भारतीय छात्र वहां जाने चाहिए.
लेख का एक वाक्य संशोधनीय है। वाक्य जो प्रकाशित है वह “लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज स्वामी दयानंद सरस्वती ने वर्ष 1882 ई. में लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की।” है। संशोधित वाक्य शायद इस प्रकार हो सकता है “लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुयायियों मुख्यतः पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी, महात्मा हंसराज, लाला लाजपतराय जी आदि ने मिलकर वर्ष 1882 ई. में की थी।” लेख पठनीय एवं ज्ञानवर्धक है। लाहोर की लाइब्रेरी में जो ८६७१ संस्कृत की पांडुलिपिया हैं, उन्हें भारत सरकार को अपने यहा माँगा कर उसका हिंदी अनुवाद कराना चाहिए और इनमे जो महत्वपूर्ण और उपयोगी हों उसका प्रकाशन भी भारत सरकार को कराना चाहिए। लेखक महोदय को बधाई एवं धन्यवाद।
लेख में उक्त संशोधन मैंने कर दिया है.
हार्दिक धन्यवाद। कृपया केशव जी के दलित शहीदों पर लेख पर मेरी टिप्पणी देखने की कृपा करें। सादर।
Sir,
I have seen the article / comments and entered my thanks. I have also informed in this regard to Dr. Vivek Arya ji through email. Yours comments on the ariticle are also very very important and relevant.
Regards,
Yours sincerely,
Man Mohan Arya
2015-04-10 18:13 GMT+05:30 Disqus :