बालकविता : दंतुरित मुस्कान तुम्हारी
दंतुरित मुस्कान तुम्हारी
हमको लगती अति प्यारी
बगैर इसके रह नहीं पाते
दर्द तुम्हारा सह नहीं पाते
देख तुम्हारी आँखें प्यारी
थकान सारी दूर हो जाती
तुम्हारे नन्हे हाथों की कलाकारी
तनाव सारा दूर भगाती
दंतुरित मुस्कान तुम्हारी
हमको लगती अति प्यारी
जब मुख तुम्हारा खुलता है
शब्दों का मेला निकलता है
उन शब्दों में मिठास है इतनी
जो किसी मिठाई में नहीं है आती
दंतुरित मुस्कान तुम्हारी
हमको लगती अति प्यारी
— विकाश सक्सेना
बहुत मधुर कविता. बच्चे की मुस्कान वास्तव में बहुत मोहक होती है. आजकल मैं आगरा में अपनी भतीजी की पुत्री कुहू की बाल लीलाओं का आनंद ले रहा हूँ. उसकी मुस्कान भी बहुत प्यारी है.
आपकी कविता को पढ़ते ही एक कविता स्मरण हो आई,
जिसकी पंक्तियां कुछ ऐसी है-
तुम्हारी ये दंतुरित मुस्कान,
मृतक में भी डाल देगी जान.
धूलि-धूसर ये तुम्हारे गात,
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात…