आज की नारी…(तेजाब से दंशित)
मैं जली नहीं जलाई गई,
तेजाब से…
बड़ी हैवानियत से मासूमियत पर फेंकी गई कुछ बूंदे…
मैं भी पहले सुंदर थी,
चेहरे से..
पर दिल से तो अब भी हूं…
कोई तो दिल की सुंदरता को देख डर जाता है,
मैं भी कभी-कभी…
सहम जाती हूं,
मर जाती हूं,
अपने आप में…
करीबी दूर हो गए एक झटके में…
मेरी तो कोई गलती नहीं थी,
मैं इनकार नहीं कर सकती क्या?
कर दिया तो चेहरा ही फूंक दिया…!
अपने अस्तित्व को ढूंढती हूं मैं,
आज की नारी,
भद्दे चेहरे के साथ..
सुंदर हृदय के साथ..
तेजाब से जली हुई नारी हूं…!!
एस.एन.’प्रजापति’
आपने तेज़ाब-पीड़ित महिलाओं की व्यथा का अच्छा चित्रण किया है.
धन्यवाद बड़े भाई!
भावपूर्ण
जी..!