ग़ज़ल
जख़्म जिन्दा हो गए, जब से हुआ उनका करम ।
तोड़ कर वो आ गए, मेरी मुहब्बत का भरम।।
खैरियत में मांगता था , मैं दुआ जिनके लिए ।
वो सजाएँ लिख गए , होना मेरे सर का कलम।।
जब कली में बन्द भौरा, मौत से था रुबरु ।
लोग चर्चा कर गए , ये इश्क था उनका धरम ।।
जिनका कातिल नाम, बख्सा है ज़माना अब तलक।
हम हिमाकत कर गए, हैं मांग कर उनका रहम।।
ख्वाहिशों की जिद ने ढूढ़ा आशनाई का चमन ।
ख़ाक में मिलते गए ,फिर मिट गया तन का जनम।।
इस महल में महफ़िलों की शान था वह शख्स भी ।
ढ़ूढ़ते ही रह गए , कैसे जला उसका हरम ।।
यूं गुजरना इस गली से था नहीं वह इत्तिफ़ाक ।
साजिशें कर के गए , वो दिल जलाने का सनम।।
– नवीन मणि त्रिपाठी
ग़ज़ल अच्छी लगी.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !