हिंदुस्तान लिखता हूँ…!
ना मुस्लिम ना हिंदु, इंसान लिखता हूँ,
सदा कलम से अपनी हिंदुस्तान लिखता हूँ…!
जात-पात क्या है,
राग-द्वेष क्या है,
दुनियादारी से उठकर ईमान लिखता हूँ,
सदा कलम से अपनी हिंदुस्तान लिखता हूँ…!
क्या दुश्मन-क्या घाती,
देश की कैसी जाति,
कलम तोड़कर मातृभौम की शान लिखता हूँ,
सदा कलम से अपनी हिंदुस्तान लिखता हूँ…!
ना झण्डा केसरिया,
ना हरा रंग फहराऊँ,
फहरा तिरंगा बलिदानों की आन लिखता हूँ,
सदा कलम से अपनी हिंदुस्तान लिखता हूँ…!
हाय गरीबी एेसी देश तोड़ती है,
गर्दिशों में है हम
ये पहचान छोड़ती है,
फुटपाथों गलियारों में ये भूखे बच्चे रोते है,
माँओं के फटे आँचल में आँसू पीकर सोते है,
जो सोया है तुम्हारा वो स्वाभीमान लिखता हूँ,
सदा कलम से अपनी हिंदुस्तान लिखता हूँ…!
लिखी है इस बार अनुनय-विनय देश की खातिर,
प्रजापति’ हूँ वरना मैं तूफ़ान लिखता हूँ,
सदा कलम से अपनी हिंदुस्तान लिखता हूँ…!