कविता

गुरु ~ चरित्र

गुरु ज्ञान के सागर होते, शिष्य धरातल की एक बूँद
आप हैं कुम्भकार गुरुवर मैं हूँ माटी का एक कुम्भ
मैं एक रिक्त खेत गुरुवर आप नंदनवन के कुंज
मैं अंधेरी रात गुरुवर आप सूर्यकिरण के पुंज
मंजिल का सोपान दिखा दें मैं भूली भटकी राही
जग को रौशन करने वाले आप दिया मैं बाती

भगवान से पहले करुंगी गुरुवर आपको नमन
गुरुदक्षिणा में अंगूठा क्या कर दूंगी जीवन अर्पण
ऐसी शिक्षा दें हमें बनूं समाज का दर्पण
दीप बनके ये वत्स आपका उज्जवल करे वतन
राही का सोपान बनूं दीन-दुखियों का साथी
जग को रौशन करनेवाले आप दिया मैं बाती

माता-पिता भी गुरु के रुप हैं देते अच्छा ज्ञान
गुरु के बिना इस जग में कोई नहीं बना महान
गुरु नहीं होते दुनिया में तो धरती होती सुनसान
बच्चों के उज्जवल भविष्य का गुरु के हाथ ही है  लगाम
ऐसा मुझे बनायें मुझपे गर्व करे ये माटी
जग को रौशन करने वाले आप दिया मैं बाती।

@दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

3 thoughts on “गुरु ~ चरित्र

  • दीपिका जी , बहुत अछे विचार हैं आप के , सचमुच गुरु के बगैर तो कुछ भी नहीं . जो हमारी शिक्षा है वोह भी तो गुरुओं से ही मिली है , जो हम को संस्कार मिले हैं वोह भी तो हमें माता पिता रूपी गुरुओं से ही मिले हैं . आप बहुत अच्छा लिखती हैं , आप का आगे भी इंतज़ार रहेगा .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छे भाव !

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