गुरु ~ चरित्र
गुरु ज्ञान के सागर होते, शिष्य धरातल की एक बूँद
आप हैं कुम्भकार गुरुवर मैं हूँ माटी का एक कुम्भ
मैं एक रिक्त खेत गुरुवर आप नंदनवन के कुंज
मैं अंधेरी रात गुरुवर आप सूर्यकिरण के पुंज
मंजिल का सोपान दिखा दें मैं भूली भटकी राही
जग को रौशन करने वाले आप दिया मैं बाती
भगवान से पहले करुंगी गुरुवर आपको नमन
गुरुदक्षिणा में अंगूठा क्या कर दूंगी जीवन अर्पण
ऐसी शिक्षा दें हमें बनूं समाज का दर्पण
दीप बनके ये वत्स आपका उज्जवल करे वतन
राही का सोपान बनूं दीन-दुखियों का साथी
जग को रौशन करनेवाले आप दिया मैं बाती
माता-पिता भी गुरु के रुप हैं देते अच्छा ज्ञान
गुरु के बिना इस जग में कोई नहीं बना महान
गुरु नहीं होते दुनिया में तो धरती होती सुनसान
बच्चों के उज्जवल भविष्य का गुरु के हाथ ही है लगाम
ऐसा मुझे बनायें मुझपे गर्व करे ये माटी
जग को रौशन करने वाले आप दिया मैं बाती।
@दीपिका कुमारी दीप्ति
दीपिका जी , बहुत अछे विचार हैं आप के , सचमुच गुरु के बगैर तो कुछ भी नहीं . जो हमारी शिक्षा है वोह भी तो गुरुओं से ही मिली है , जो हम को संस्कार मिले हैं वोह भी तो हमें माता पिता रूपी गुरुओं से ही मिले हैं . आप बहुत अच्छा लिखती हैं , आप का आगे भी इंतज़ार रहेगा .
बहुत अच्छे भाव !
बहुत सुंदर !