कविता

मेरी आकांक्षा

ऐ जिंदगी इतना साथ देना मैं पूरा करुं अरमान
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान

मेहनत से पिछे न हटे मन को ये बात बता देना
धैर्य विश्वास कभी न खोये दिल को ये समझा देना
समाज मुझे दर्पण समझे ऐसी बनाऊं पहचान
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान

देश को रौशन करुं चाहे खूद ही जलना पड़े
आगे रहे हमारा परचम चाहे जितना चलना पड़े
पतितों का बनूं सहारा पथिकों का सोपान
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान

ईमानदारी की तिनकों से बनाऊं सुंदर आसियाँ
चरित्र की पूँजी से धनी कर दूं मैं अपनी वादियाँ
मातृभूमि को भी मेरे जन्म पर हो अभिमान
यही आकांक्षा है मेरी मैं छू लूं आसमान

– दीपिका कुमारी दीप्ति (पटना)

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।