दूध का उफान है किशोरावस्था
किशोरावस्था उम्र का वह पड़ाव है जिसका सफर करना सबसे कठीन होता है। इस काल में किशोरों में क्रांतिकारी शारीरिक,मानसिक ,समाजिक और संवेगात्मक परिवर्तन होते हैं। इसलिए वे अपने आप में सामंजस्य नहीं बना पाते हैं। इसिलिए स्टेनले हॉल ने किशोरावस्था को बड़े संघर्ष,तनाव ,तूफान और विरोध की अवस्था कहा है।
इस अवस्था में उसमें अनेक अप्रिय बातें होती है, जैसे उदंडता, कठोरता,क्रोध, चिड़चिड़ापन,आत्म-प्रदर्शन की प्रवृति, गंदगी व अव्यवस्था की आदतें ,विपरित लिंगों के प्रति विशेष आकर्षण, कल्पना और दिवास्वप्नों में विचरण आदि। वह माता-पिता से मुक्त होकर मित्रों के साथ स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहता है। पारिवारिक जीवन और व्यवसाय के लिए तैयारी करना चाहता है। अपनेआप में समायोजन न कर पाने के कारण उनमें अपराध-प्रवृति का विकास होने लगता है और नशीली वस्तुओं
का प्रयोग भी करने लगता है। इस अवस्था में मृत्यु-दर और मानसिक रोगों की संख्या भी अन्य अवस्था से अधिक होती है।
किशोरावस्था दूध के उफान की तरह है जिसे कोई नहीं रोक सकता है। लेकिन जब हम दूध के साथ सतर्कता बर्तें तो उसके उफान को कम कर सकते हैं और दूध को गिरने के बजाय स्वादिष्ट बना सकते हैं। अतः माता-पिता , अभिभावक तथा शिक्षक को चाहिए कि किशोरों के साथ मित्र जैसा व्यवहार करके उसके समस्याओं का सतर्कता से अध्ययन करके
उसे उचित दिशा प्रदान कर उसे आत्म-संतोष प्रदान करें। यह जीवन का कठीन और नाजुक काल होता है। बालक का झुकाव जिस ओर यहोता है उसी दिशा में वह जीवन में आगे बढ़ता है। अतः बालकों के भावी भाग्य और उत्कृष्ट जीवन के निर्माण के लिए उसके इस जीवन को समझें , उसका साथ दें, इस अवस्था की गरिमा से एकपल भी विचलित न करें। उसके शिक्षा को सुनियोजन और संचालन में अपना योगदान दें ,क्योंकि शैक्षिक दृष्टिकोण से किशोरावस्था का अत्यधिक महत्व है।
बहुतअच्छा लेख।- किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है इतना ही नहीं यह जीवन की सबसे नाज़ुक अवस्था है इस अवस्था में किशोर इक नाज़ुक मोड़ पर होते हैं कभी अपने आपको बच्चा समझते हैं तो कभी अपने आपको प्रौढ़ समझते हैं।इस अवस्था में उनमें संवेगों की तीव्रता होती है उन्हें अपनी प्रतिष्ठा की बहुत चिन्ता होती है और उनके अन्दर अजीब हलचल पैदा होती है और एक तुफान सा आ जाता है। शायद इसी का दूसरा नाम है किशोरावस्था।