कविता

~~~दोहे~~~

रे मनवा! दो पट पड़े, ले लपेट या खोल !
एक में आपहूं जकड़ पड़ा, एक लगावे मोल !!

गागर रीती माट की, घाट-घाट का नीर !
पियस-तृषण जो ना मिटे, चढ़े घनेरी पीर !!

©एस. एन. प्रजापति

सूर्यनारायण प्रजापति

जन्म- २ अगस्त, १९९३ पता- तिलक नगर, नावां शहर, जिला- नागौर(राजस्थान) शिक्षा- बी.ए., बीएसटीसी. स्वर्गीय पिता की लेखन कला से प्रेरित होकर स्वयं की भी लेखन में रुचि जागृत हुई. कविताएं, लघुकथाएं व संकलन में रुचि बाल्यकाल से ही है. पुस्तक भी विचारणीय है,परंतु उचित मार्गदर्शन का अभाव है..! रामधारी सिंह 'दिनकर' की 'रश्मिरथी' नामक अमूल्य कृति से अति प्रभावित है..!

5 thoughts on “~~~दोहे~~~

  • सूर्यनारायण प्रजापति

    प्रथम दोहे का अर्थ-
    कवि मन के बारे में बताते हुए कहते है कि मन के दो संवेग होते है जिसमें एक तो दरवाजे के जैसा खुला होता है और दूसरा कपड़े तरह गुंथा हुआ.. मनुष्य इन्ही के मध्य जकड़ा रहता है और स्वयं का मूल्य स्वयं घटा लेता है..!
    द्वितीय दोहे का अर्थ-
    कवि मिट्टी के घड़े के माध्यम से मानवीय तृष्णा पर आक्षेप करते हुए कहते है कि जिस प्रकार एक मिट्टी की रीती मटकी में अलग-अलग जगहों का जल आ जाने पर भी उसकी प्यास शांत नहीं होती उसी प्रकार मानवीय इच्छाएँ होती है जो बुझाए नहीं बुझती और एक अलक्षित पीड़ा और बढ़ जाती है..जिसे तृष्णा का नाम दिया जाता है!

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया दोहे।

    • सूर्यनारायण प्रजापति

      धन्यवाद बड़े भाई

  • दोहे अछे लगे .

    • सूर्यनारायण प्रजापति

      धन्यवाद

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