सामाजिक

लुप्त होती लोरियाँ

सत्य वचन ! लोरियाँ लुप्त हो रहीं हैं। भौतिक वाद ही हो सकता है एकमात्र कारण।

इस तेज रफ़्तार जिंगदागी में जहाँ सभी को एक ही धुन है अधिकाधिक धन ,ऐश्वर्या की प्राप्ति। येन-केन प्रकारेण। आज भौतिकता अपनी चरम सीमा पर है जहाँ तकनीकी विकास ने हर सेकेंड नए -नए भोग के साधन और , सुविधाएं उपलब्ध करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रखी है। आज हर घर में लोग कम, बाजार अधिक नजर आ रहा है। परिवार के नाम पर एक-दो सदस्य लेकिन , शानो-शौकत ,भोगविलास की वस्तुओं के घरों में भण्डार लगे हैं ।

परिवार का हर सदस्य इसी दौड़ में शामिल है। महिलाएं शिक्षित हैं. ख़ुद भी काम करके घर की आर्थिक स्तिथि मज़बूत करना चाहती हैं एवं स्वं भी कार्य करके आत्मसंतुष्टि पाना चाहती हैं साथ ही आजकल तो पति भी कामकाजी बीबी चाहते हैं जो उनका हाथ बता सके। जो पढ़ी -लिखी महिलाएं घर की देखभाल एवं बच्चों की देखभाल करना चाहती हैं उन्हें अक्सर पति और परिवार वालों से तंज सुनने को मिलते हैं ‘कि फलां-फलां कितना कमाती है, पति की ज़िम्मेदारियों में अपना हाथ बंटाती है।

इस भौतिक वाद की प्रचुरता ने जहाँ आर्थिक स्तिथि मज़बूत की है वहीँ बहुत सारे नकारात्मक प्रभाव देखने को मिले हैं। माँ भी काम करती है उसे घर बाहर दोनों जगह अनुशासन ,समय प्रबंधन, कार्यकुशलता का परिचय देना होता है। ऐसे में बच्चे को बहलाने के लिए लोरी की जगह खिलौनों और मोबाइल, ने ले ली है। अब तो बच्चे भी टेक्नो फ्रेंडली हो गए। उन्हें भी शायद अपनी माँ की आवाज़ से अधिक मोबाइल की म्यूज़िक, लोरी भाती है। बच्चे को मोबाइल पकड़ा कर, माएं अपना समय बचा रहीं हैं एवं मोबाइल में जो कुछ भी अपलोड है उसे ही सुनवा कर फ़ुर्सत पा रही हैं।

ये तो हुआ एक पक्ष। अब दूसरे पक्ष की ओर भी दृस्टि डालें। यहाँ सीधा सा प्रश्न उठता है कि अगर पुरुष को लगता है की उसकी पत्नी पढ़ी-लिखी ,कामकाजी हो , उसकी ज़िम्मेदारियों में हाथ बंटाएं तो कुछ अपनी सामंतवादी सोच ,कुछ अपना व्यवहार उसे भी बदलना पड़ेगा। गृह कार्य में उसे अपनी पत्नी का हाथ बांटना पड़ेगा क्यूकि गृहस्थी दो पहियों की गाड़ी समांतर रहेगी, तभी चलेगी , न कि एक दूसरे से अंतर रख कर। कुछ समय मिलेगा पत्नी जो माँ है , को तभी तो बच्चे को गोद में बैठा कर लोरी सुनाएगी !बच्चे के मन में संवेदनाएं , भाव , संस्कार और ,प्रेम जगाएगी!. नहीं तो फिर मोबाइल है ही ,कृत्रिम भाव, मशीनीकरण के लिए !! भावनाएं भी आज यंत्रीकृत होती जा रहीं हैं।

‘जरूरत से अधिक’ के पीछे,महत्वाकांक्षाओं के भंवर में, अगर यूँ ही दौड़ लगती रही तो इस तरह के कई सवाल परिवार, समाज और देश में उठते रहेंगे , जिनके बहुत नकारात्मक, एवं घातक परिणाम उभर कर आयेंगे, जो एक आदमी को कटघरे में ज़रूर खड़ा कर देंगें कि वो इंसान है या मशीन!! अंत में चार साल पहले लिखी गयी मेरी कविता ‘वसुधैव कुटुंबकम ‘ से कुछ पंक्तियाँ:- ‘

न माओं के पास लोरियाँ हैं,

न हाथों में पलना झूलती डोरियाँ हैं!

न चाचा-मां के तोहफे , न वो प्यार-मनुहार,

न दादी की कहानियां , दादा का दुलार !

ये सब बातें अब छोटी नज़र आती हैं ,

स्वार्थगत ज़रूरतें ,इनसे न पूरी होती नज़र आती हैं !

अनुपमा श्रीवास्तव ‘अनुश्री’

 

अनुपमा श्रीवास्तव 'अनुश्री'

परिचय नाम- अनुपमा श्रीवास्तव (अनुश्री) जन्मतिथि- 28 अगस्त शिक्षा- एम.एस.सी., एल.एल.बी. साहित्यिक अभिरूचियाॅं- कविता, कहानी, लेख, क्षणिकाऐं प्रकाशन - देश - देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविताओं का निरंतर प्रकाशन। विदेश- mauritius से प्रकाशित हिन्दी स्पीकिंग संगठन द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘सुमन’ और महात्मा गाॅंधी संगठन से प्रकाशित पत्रिकाएॅं ‘बसंत’ और रिमझिम’ में कविताओं और कहानी का प्रकाशन। - इन्टरनेट पर साहित्यिक गतिविधियाॅं - - अखिल भारतीय बुंदेलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद म.प्र. भोपाल - म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिन्दी भवन भोपाल (म.प्र.) - अखिल भारतीय साहित्य परिषद भोपाल (म.प्र.) - बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र भोपाल (म.प्र.) प्रकाषन - बाल काव्य संग्रह ‘अवि, तुम्हारे लिए (2013) ‘काव्य पुस्तक’ प्रकाषनाधीन प्रसारण -‘आकाशवाणी भोपाल से कविताओं टॉक शो का प्रसारण नारी शक्ति कार्यक्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का संचालन ‘दूरदर्शन ;मध्यप्रदेश’ द्वारा साहित्य समय ,परिवार ,काव्यांजलि ,कार्यक्रमों में कविताओं ,टॉक शो का प्रसारण एवं संचालन सम्मान - प्रोत्साहन सम्मान -2013 रंजन कलष भोपाल,द्वारा - साहित्यकार सम्मान 2013-कादबिनी पुस्तक मेला एंव नेषनल बुक ट्रस्ट,नई दिल्ली द्वारा - ‘अक्षर षिल्पी सम्मान 2013’( संस्कार सारथी ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा) - म.प्र. लेखिका संघ द्वारा बाल काव्य संग्रह ‘अवि, तुम्हारे लिए’ हेतु सम्मान - सार्वदेषिक कायस्थ महासभा, भोपाल द्वारा साहित्यकार सम्मान - जे एम डी प्रकाशन, नई दिल्ली, द्वारा ‘हिंदी सेवी सम्मान ’ 2014 - ‘राष्ट्रीय संचालन एवं संभाषण अलंकरण’ 2014, द्वारा निर्दलीय प्रकाशन ,दिल्ली अन्य गतिविधियाॅ - मंचसंचालन ( बिभिन्न साहित्यिक,सांस्कृतिक ,सरकारी शैक्षिक कार्यक्रमों का मंच संचालन) स्क्रिप्ट लेखन, गायन, संपादन अनुभव - उपसंपादन - ओजस्वनी अंतराष्ट्रीय पत्रिका सचिव - महिला महासंघ, म.प्र. भोपाल पता- अनुपमा श्रीवास्तव, अनुश्री ई-मेल - [email protected]

2 thoughts on “लुप्त होती लोरियाँ

  • अनुपमा श्रीवास्तव 'अनुश्री'

    haan vijay ji …..yahi hai aaj ke daur ka kadwa sach!!

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख ! आजकल की मातायें ख़ुद लोरियाँ नहीं जानतीं। अपने बच्चों को क्या सुनायेंगीं?

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