गीत : तेरी यादों की ढेरी में
तेरी यादों की ढेरी में
मन पल-छिन खोया रहता है
कब आती है भोर सुनहरी
कब ढल जाती शाम सुहानी
पता न चल पाता कब चढ़ के
उतर गया गंगा का पानी
जागा दिखता बाहर से पर
अंदर से सोया रहता है
गर्म हवाएं बहती रहतीं
प्यास कहीं कोने में दुबकी
किसी चपल बच्ची के जैसे
झलक दिखा छिप जाती सुबकी
धूल न जमती दृग-कोरोंपर
स्थान सदा धोया रहता है
रस में लिपटे पृष्ठ पुराने
नहीं पलटने देते आगे
मायाजाल बुने बैठे हैं
रंग भरे अतीत के धागे
नहीं पनपती पौध नयी अब
बीज व्यर्थ बोया रहता है
— कुमार गौरव अजीतेन्दु