गीत/नवगीत

गीत : तेरी यादों की ढेरी में

तेरी यादों की ढेरी में

मन पल-छिन खोया रहता है

 

कब आती है भोर सुनहरी

कब ढल जाती शाम सुहानी

पता न चल पाता कब चढ़ के

उतर गया गंगा का पानी

जागा दिखता बाहर से पर

अंदर से सोया रहता है

 

गर्म हवाएं बहती रहतीं

प्यास कहीं कोने में दुबकी

किसी चपल बच्ची के जैसे

झलक दिखा छिप जाती सुबकी

धूल न जमती दृग-कोरोंपर

स्थान सदा धोया रहता है

 

रस में लिपटे पृष्ठ पुराने

नहीं पलटने देते आगे

मायाजाल बुने बैठे हैं

रंग भरे अतीत के धागे

नहीं पनपती पौध नयी अब

बीज व्यर्थ बोया रहता है

—  कुमार गौरव अजीतेन्दु

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन