उपन्यास अंश

यशोदानंदन-५२

चाणूर और मुष्टिक के गतप्राण होने के उपरान्त कूट, शल और तोषल नामक भीमकाय राजमल्लों ने श्रीकृष्ण-बलराम पर एकसाथ आक्रमण कर दिया। कूट बलराम के एक घूंसे का भी प्रहार नहीं सह सका। वह वही ढ़ेर हो गया। शल तेजी से श्रीकृष्ण की ओर बढ़ा। मुस्कुराते हुए श्रीकृष्ण ने कौतुक करते हुए कंदुक की भांति उसके सिर पर अपने दायें पैर का प्रहार किया। उसका सिर धड़ से अलग हो गया। महान मल्ल तोषल को भी श्रीकृष्ण ने तिनके की भांति चीरकर रख दिया। अपने प्रमुख पांच मल्लों की मृत्यु अपने नेत्रों के सम्मुख देखकर अन्य उपस्थित मल्ल अखाड़े में आने के बदले अपने प्राण बचाकर पलायन कर गए। खाली अखाड़े में श्रीकृष्ण और बलराम निर्द्वन्द्व विचरण कर रहे थे। गोकुल की पूरी बालमंडली अखाड़े में उतर आई। अपने कंधों पर श्रीकृष्ण-बलराम को उठाकर सखाओं ने अखाड़े का बार-बार चक्कर लगाया। सब एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे और आनन्द से झूम रहे थे। एक ओर दुन्दुभि बज रही थी, दूसरी ओर ढोल बजने लगे। श्रीकृष्ण और बलराम के पांव के घूंघरू भी छनक रहे थे।

सहस्त्रों यादवों ने समवेत स्वर में जयघोष किया – श्रीकृष्ण-बलराम की जय! श्रीकृष्ण-बलराम की जय! यह जयघोष प्रासाद के बाहर मुख्य द्वार पर एकत्रित अपार जनसमूह ने भी सुना, सशत्र सैनिकों ने भी सुना। मथुरावासियों का समूह अब निरंकुश हो चुका था। सैनिकों में भी प्रतिरोध की शक्ति शिथिल हो चुकी थी।

बाढ़ के जल के  प्रवाह की भांति अपार जनसमूह ने प्रासाद में प्रवेश ले लिया। रंगभूमि में तिल धरने का भी स्थान शेष नहीं बचा। घोषणाओं और जयघोष का जोर बढ़ता ही गया। कंस के भय का तनिक भी प्रभाव किसी पर दृष्टिगत नहीं हो रहा था। किसी अति उत्साही यादव ने मंच पर स्वयं स्थान बनाया और उच्च स्वर में घोषणा करने लगा –

“अन्यायी नराधम कंस को धिक्कार है। अपनी बहन के नवजात शिशुओं की हत्या करने वाले नराधम को धिक्कार है। अन्त कर डालो इस पापी का। श्रीकृष्ण-बलराम की जय! पापी कंस का अन्त हो, अन्त हो।”

कंस थर-थर कांप रहा था, भय से नहीं, क्रोध से। महाकाल के रूप में श्रीकृष्ण सामने उपस्थित थे। ऋषिवर नारद की वाणी सत्य प्रतीत हो रही थी। कंस राजसिंहासन पर बैठा नहीं रह सका। वह खड़ा हो गया। उसकी आँखों से अंगारे बरस रहे थे। कर्कश स्वर में सेनापति को आज्ञा दी-

“सेनापति! तुम इस प्रकार खड़े-खड़े क्या देख रहे हो? अभी इसी क्षण वसुदेव के इन दुश्चरित्र पुत्रों को नगर से बाहर निकाल दो। गोपों का सारा धन छीन लो और दुर्बुद्धि नन्द को बंदी बना लो। यह सारी योजना वसुदेव ने बनाई है। उस दुष्ट कुबुद्धि का बंदीगृह में जाकर वध कर दो। मेरा पिता उग्रसेन अपने अनुयायियों के साथ मेरे शत्रुओं से मिला है। उसका भी अविलंब अन्त कर दो।”

कंस अपनी पूरी शक्ति से प्रलाप कर रहा था। न सेनापति आगे बढ़ रहा था, न सैनिक। जनता का सैलाब उमड़ता जा रहा था। कोई धीर-गंभीर व्यक्ति ऊंचे स्वर में लगातार घोषणा कर रहा था – “आगे बढ़ो, श्रीकृष्ण! तेरा जन्म अन्याय को पैरों तले कुचलने के लिए ही हुआ है। अवरुद्ध हुए न्याय को मुक्ति दिलाओ। जीवन-गंगा के विकास की इस बाधा को जड़ से उखाड़ दो। इस समय रिश्ते-नातों पर ध्यान मत दो । प्रत्येक जीव से तेरा जन्मसिद्ध संबन्ध है। इसे कदापि मत भूलो। किसी से तेरा कोई विशेष संबन्ध नहीं है। तू किसी का भांजा नहीं और तेरा कोई मामा नहीं। अन्यायी का तू कुछ भी नहीं लगता। प्रत्येक अधर्मी, अन्यायी और अत्याचारी तुम्हारा स्वाभाविक शत्रु है। अधर्म का दलन और सत्य का उत्थान – यही तेरा जीवन-कार्य है। आगे बढ़ो, श्रीकृष्ण! समय और ज्वारभाटा किसी की प्रतीक्षा नहीं करते। यह घड़ी बीत न जाय। अन्यायी कंस अवसर देख भाग न जाय। पापी का अन्त करो। श्रीकृष्ण-बलराम की जय।”

राजसिंहासन पर यदुवंश का सोमवंश , शूरसेन राज्य का, मथुरा का मूर्तिमान घोर पाप प्राण-भय से थरथराता हुआ खड़ा था। श्रीकृष्ण प्रचंड आत्मविश्वास से लबालब भरे थे। एक ऊंची छ्लांग लगाई और कंस के सम्मुख जा खड़े हुए। सिंहासन पर खड़े हुए ऊंचे विशालकाय कंस की आँखों में अपनी आँखे डाल दी। कंस की आँखों ने भी श्रीकृष्ण की पापघ्न, खलघ्न असत्य को भेदने वाली आँखों का रहस्य पढ़ लिया। प्राण-रक्षा के लिए उसने हाथ में ढाल और तलवार उठाई। श्रीकृष्ण ने हवा में छ्लांग लगाई। उनके दोनों पैर कंस के दोनों हाथों से टकराये। ढाल-तलवार दूर जा गिरी। कंस अब पूरी तरह निशस्त्र था। श्रीकृष्ण ने उसकी कटि पूरी शक्ति से पकड़ ली। वह भयभीत होकर, गलितगात्र सा – आँखें विस्फारित कर सिर्फ देखता रहा। एक अस्फुट स्वर श्रीकृष्ण के कानों से टकराया –

“मैं तेरा मामा हूँ।”

“तू मेरा कुछ भी नहीं है। तू कुलघाती है, अधर्मी है, अन्यायी है, पापी है। तेरा वध ही तेरी मुक्ति है।”

 

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

One thought on “यशोदानंदन-५२

  • विजय कुमार सिंघल

    अत्यंत रोचक !

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