लघुकथा : मदर्स डे
कई दिनों बाद आज पड़ोस में रहने वाली काकी के घर उनका हाल-चाल पूछने गयी तो उनका मुरझाया चेहरा देखकर हैरान रह गयी। लग रहा था जैसे वे कई दिनों से बीमार हों, फिर भी कमीज पर तुरपाई करने में लगी हुई थीं। तभी उनकी उंगली में सूई चुभी और खून की बूंद निकली।भाग कर मैंने अपने दुपट्टे के किनारे से उनकी उंगली को दबा दिया, ताकि खून बंद हो सके । हैरान होकर मेरी ओर देखकर बोली, “अरे आओ… आओ उमा बिटिया, मैं सोच ही रही थी तुम्हें बुलाने की, आज मेरा मन बहुत उदास था।” धीरे-धीरे बोली।
“लगता है काकी तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं। अरे काकी….तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है …!” माथा छूते हुए उमा बोली।
” हां बिटिया, इसीलिए तो तुम्हें याद कर रही थी, बबुआ को फोन लगाने के लिए। “दो हफ्ता हुई गवा बबुआ नहीं आया। पता नहीं वो कैसन है? पिछली बार आया तो बहुत दुबला लग रहा था, रात-दिन पढ़ता है अव्वल आने के लिए। हमको उसकी फिकर खाए जात है। पता नहीं कुछ खाता-पीता भी है या नहीं ।” कहकर अपनी धोती के पल्लू से आंखें पोंछने लगीं ।
“पर काकी तुम्हें तो बुखार है, फिर आप क्यों सिलाई कर रही हैं ? ज्यादा तबीयत बिगड़ गई तो ?”
“बिटिया, बबुआ के कालेज की फीस भी तो देनी है,काम नहीं करूंगी तो पैसा कौन देगा? अच्छा सारी बातन छोड़ ,बिटुआ को फोन लगा।”
“लो काकी ,बात कर लो फोन लग गया”
‘हेलो…. बिटुवा कैसन हो? तुम्हारी बहुत फिकर लगी रहत है। टैम से रोटी -पानी लेता है या नहीं ?’
“हां माँ, मै बिल्कुल ठीक हूं,पर तुम कैसी हो?”
“अरे बिटुवा तुम आई जाओ । हमार ऐनक भी नया बनवाना है, कुछ दिन से ताप भी आ रहा है। पन्द्रहा दिन होई गवा तुम्हें देखे। तुमको देख लूंगी तो खुस होकर ठीक हो जाऊंगी । ”
” पर माँ, मैं इस रविवार नहीं आ सकता।सभी दोस्तों ने मिलकर मदर्स डे पर पार्टी रखी है। हैप्पी मदर्स डे माँ ……।”
“अरे बिटुवा सुन तो….सुन तो…. ।” परन्तु दूसरी ओर से फोन कट चुका था।
काकी फोन को उलट- पलट कर फोन की ओर ताकते हुए बेबस-सी मेरी ओर देखती हुई बोली- ‘बिटिया, ये मदरस डे( मदर्स) क्या होवे है ?’
— सुरेखा शर्मा
अच्छी लघु कथा ! आजकल के बच्चे ऐसी ही होते हैं.