लघुकथा

लघुकथा : सास

“यार मैं तो अब टिंडा तोरी सब खाने लगी हूँ.”

“मैं भी यार,जब मम्मीजी पूछती हैं ‘कैसी बनी है?’तो कहना ही पड़ता है ‘बहुत अच्छी बनी है आपके हाथ में तो जादू है’

“मेरे husband तो पहले सारी सब्जियां खा लेते थे आजकल ज्यादा नखरे करने लगे हैं.”

“हाँ यार सास कहती है’पहले तो खा लेता था आजकल क्यों नहीं खाता पता नहीं’  हा हा हा हा ही ही.”

“यार मेरे husband तो कभी गुस्से से बोलेंगे तो सास सीधा मेरे को बोलती हैं ‘तूने ही कुछ कहा होगा उसको पहले तो ऐसे नहीं बोलता था’      हा हा ही ही.”

“हाँ यार मेरे को तो उनकी शक्ल देखकर ही अन्दाजा हो जाता है अब मेरे ऊपर कुछ blame करने वाली हैं।” जोरदार ठहाका।

Basketball class over. सारी mom’s अपने अपने बच्चों का हाथ पकड़ कर घर को रवाना। सूरज भी घर को रवाना।

4 thoughts on “लघुकथा : सास

  • विजय कुमार सिंघल

    मजेदार कहानी !

    • शुक्रिया.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हा हा हा , लघु कथा अच्छी लगी , अपनी अपनी सासू माँ की सिफ्तें .

    • शुक्रिया

Comments are closed.