उपन्यास अंश

यशोदानंदन-५८

“राधा!” उद्धव के कंठ से अस्फुट स्वर निकला।

“कौन, उद्धव?” राधा का प्रतिप्रश्न उद्धव जी ने सुना।

गोपियों से बात करते-करते, उन्हें समझाते-बुझाते सूरज कब पश्चिम के क्षितिज पर पहुंच गया उद्धव जी को पता ही नहीं चला। राधा ने उद्धव जी के पास आने की आहट भी नहीं सुनी। उद्धव जी के अधरों से प्रस्फुटित एक शब्द मात्र से ही राधा ने उन्हें पहचान लिया। उद्धव जी गद्‌गद हो गए।

‘राधा’ संयुक्त शब्द है – रा+धा। ‘रा’ का अर्थ है प्राप्त हो और ‘धा’ का अर्थ है मोक्ष…….मुक्ति। ‘राधा’ अर्थात मोक्ष-प्राप्ति के लिए व्याकुल जीव। हर गोपी राधा! हर राधा व्याकुल मोक्षार्थी। सारे गोप और सारी गोपियां मोक्षप्राप्ति के लिए व्याकुल जीव ही तो थे।

“राधा” उद्धव जी ने निकट खड़ी राधा को निरखते हुए पूछा – “तू कुशल पूर्वक तो है न?”

राधा हंस पड़ी – एक निष्पाप हंसी। उसकी देह से चन्दन और पुष्पों की सुगन्ध उठ रही थी।

“राधा की कुशलता पूछ रहे हो उद्धव? उस सर्वव्यापी से राधा की कुशलता छिपी है क्या?

उद्धव जी का वाक्‌कौशल पुनः पराजित हुआ। मन ही मन सोचने लगे – इन गोपियों को श्रीकृष्ण के अतिरिक्त कोई संतुष्ट नहीं कर सकता। बातचीत के क्रम को जोड़ते हुए उन्होंने राधा को संबोधित किया –

“तुम्हारे लिए श्रीकृष्ण का विशेष संदेश लेकर आया हूँ। कहो तो सुनाऊं।”

“कहो उद्धव, शीघ्र कहो।” राधा पहली बार कुछ विकल दीख पड़ी – “श्रीकृष्ण का संदेश देने में विलंब न करो।”

“राधा ………” उद्धव ने अतिशय भावविभोर हो राधा के मस्तक पर हाथ रखा, कृष्ण ने ……… कृष्ण ने कहा है …….” शब्द फिर से अटक गए।

“क्या कहा है उद्धव, श्रीकृष्ण ने?” राधा अपलक उद्धव को ताकती रही।

“श्रीकृष्ण ने कहा है कि …… कि…….राधा! मथुरा-गमन के पश्चात्‌ गोकुल में मेरा पुनरागमन भविष्य की पुस्तिका में नहीं लिखा है। वहां से विदा लेने के पश्चात्‌ सारे संबन्ध और समस्त मूर्तियां – ये सब कृष्ण के जीवन से विलग हो जायेंगे। प्रत्येक संबन्ध कर्माधीन है। जीवन्त-निर्जीव, शरीरी-अशरीरी, स्थूल-सूक्ष्म – ये सब कल के अधीन हैं। इन सबका अन्त निश्चित है। स्थूल और सूक्ष्म, सब समाप्त हो जाता है। इस समाप्ति को सहजता से स्वीकार करना – यही तो मानव-धर्म है।”

“उद्धव! स्वयं तुमको, श्रीकृष्ण को, राधा को भी गोकुल से विलग कर दे, ऐसा भविष्य बना ही नहीं। मथुरा-गमन के पूर्व इसी स्थान पर, उस शिला पर बैठकर श्रीकृष्ण ने मुझसे कहा था – “राधे!” तुमसे मुझे कोई भी व्यक्ति किसी भी कालखंड में विलग नहीं कर सकता। मृत्युलोक में आने के पश्चात्‌ देह की नश्वरता के सिद्धान्त का पालन तो करना ही पड़ता है, परन्तु इस पार्थिव शरीर के नष्ट हो जाने के बाद भी समस्त सृष्टि जब भी मुझे याद करेगी, उसके पूर्व तुम्हें याद करना उसकी वाध्यता होगी। इस पृथ्वी के मनुष्य मुझे और तुम्हें “राधा-कृष्ण” के रूप में ही याद करेंगे। यहां तक कि मन्दिर की मूर्तियों में भी हम-तुम साथ रहेंगे। इस सृष्टि का आरंभ शून्य से हुआ है और अन्त भी शून्य में ही है। आदि और अन्त की अवधि के बीच हम पूरे जगत में एक साथ विद्यमान होंगे।”

राधा ने उद्धव का हाथ पकड़ा और लगभग घसीटते हुए यमुना की रेत में ले जाकर बोली –

“हे उद्धव! श्रीकृष्ण का कैसा अव्यवहारिक संदेश लेकर तुम आए हो? उनसे इस संसार की कोई शक्ति हमसे विलग नहीं कर सकती। तुम यह आकाश देख रहे हो न? कलकल-छलछल की ध्वनि के साथ प्रवाहमान कालिन्दी को भी देख रहे हो? हवा में लहराते हुए उन तमाल वृक्ष के पत्तों को देख रहे हो? ये सब हैं और तुम कहते हो कि श्रीकृष्ण हमसे विलग हैं और गोकुल में उनका पुनरागमन नहीं होगा? यह कैसे हो सकता है? उद्धव जी! क्या तुम श्रीकृष्ण को मात्र पार्थिव देहधारी समझते हो?

“हम सब देहधारी हैं राधा!” उद्धव जी बोले।

“श्रीकृष्ण के संस्पर्श के पश्चात्‌ भी भिन्न देह का भान टिका रहा, यह तो घोर आश्चर्य है, उद्धव जी!” राधा खिलखिलाकर हंस पड़ी। कालिन्दी के प्रवाह से भी अधिक पवित्र और सौम्य था राधा का हास्य-प्रवाह।

 

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

4 thoughts on “यशोदानंदन-५८

  • Manoj Pandey

    सिंघल जी, धन्य है आपका यह प्रयास जिसके द्वारा विपिन किशोर जी ऐसे अच्छे रचनाकारों से समागम होता है।

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद तो आपको लेखक महोदय को देना चाहिए. मेरा योगदान तो केवल वेबसाइट पर प्रस्तुत करने का है. जय श्री कृष्ण !

      • Manoj Pandey

        ‘बिन गुरु हरि केहि भाँति !’ निमित्त होना भी सबके वश में नहीं। यदि निमित्त का सम्मान हुआ तो उपलब्ध का सम्मान स्वयमेव हो जाता है।

  • विजय कुमार सिंघल

    मोहक बातचीत !

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