गज़ल
मैं न सोया रात सारी , तुम कहो
बिन मेरे कैसे गुज़ारी , तुम कहो
हिज्र आँसू दर्द आहें शाइरी
ये तो बातें थीं हमारी , तुम कहो
हाल मत पूछो मिरा , ये हाल है
जिस्म अपना , जां उधारी , तुम कहो
रख दो बस मेरे लबों पे उंगलियाँ
मैं सुनूँगा रात सारी , तुम कहो
फिर कभी अपनी सुनाऊंगा तुम्हें
आज सुननी है तुम्हारी ,तुम कहो
रोक लो कान्हा उसे, जाता है वो
वो नहीं सुनता हमारी , तुम कहो
— प्रखर मालवीय कान्हा
वाह वाह ! बढ़िया ग़ज़ल !!
Shukriya