गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

मैं न सोया रात सारी , तुम कहो

बिन मेरे कैसे गुज़ारी , तुम कहो

 

हिज्र आँसू दर्द आहें शाइरी

ये तो बातें थीं हमारी , तुम कहो

 

हाल मत पूछो मिरा , ये हाल है

जिस्म अपना , जां उधारी , तुम कहो

 

रख दो बस मेरे लबों पे उंगलियाँ

मैं सुनूँगा रात सारी , तुम कहो

 

फिर कभी अपनी सुनाऊंगा तुम्हें

आज सुननी है तुम्हारी ,तुम कहो

 

रोक लो कान्हा उसे, जाता है वो

वो नहीं सुनता हमारी , तुम कहो

 

प्रखर मालवीय कान्हा

 

प्रखर मालवीय 'कान्हा'

नाम- प्रखर मालवीय कान्हा पिता का नाम - श्री उदय नारायण मालवीय जन्म : चौबे बरोही , रसूलपुर नन्दलाल , आज़मगढ़ ( उत्तर प्रदेश ) में 14 नवंबर 1991 को । वर्तमान निवास - दिल्ली शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा आजमगढ़ से हुई. बरेली कॉलेज बरेली से बीकॉम और शिब्ली नेशनल कॉलेज आजमगढ़ से एमकॉम। सृजन : अमर उजाला, हिंदुस्तान , लफ़्ज़ , हिमतरू, गृहलक्ष्मी , कादम्बनी इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ। 'दस्तक' और 'ग़ज़ल के फलक पर ' नाम से दो साझा ग़ज़ल संकलन भी प्रकाशित। संप्रति : नोएडा से सीए की ट्रेनिंग और स्वतंत्र लेखन। संपर्क : [email protected] ) 9911568839

2 thoughts on “गज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बढ़िया ग़ज़ल !!

    • प्रखर मालवीय 'कान्हा'

      Shukriya

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