ग़ज़ल
नींद अपनी से दगा न कर
रातभर तू जगा न कर
वो बे-ईमान वाले हैं, हाँ
बार बार उनसे मिला न कर
जो दूर है निगाहों से तेरी
उन्हें दिल से जुदा न कर
फैसले ठन्डे दिमाग से ले
जल्दबाजी यूँ ही किया न कर
इक दिन तू पत्थर हो जायेगा
ऐसे अश्क़ अपने पिया न कर
‘विंकल’ हमराही बना किसी को
इस उम्र में तन्हा जिया न कर
— गौरव कुमार ‘विंकल’
shukria vijay ji
shukria ramesh ji
अच्छी गजल विकल जी।
बेहतरीन ग़ज़ल !