कविता

कविता : चाय

कितने कप ठंडी हो गई
चाय बीबी के हाथों की
फेसबुक  में लीन होकर ।
कितनी बार गर्म किया ,
बीबी ने अपना दिमाग, नहीं चाय ।
कितनी बार सोचे, छोड़ देंगे
बीबी को नहीं, फेसबुक को ।
पर कुछ आदतें छूटती नहीं
गर छूट जाएगी, बीबी दूर जाएगी ।
प्यार कम हो जायेगा,
क्योंकि बीबी उलाहना देने
डांटने को अधिकार समझती है
इसी को पत्नी पत्नी के बीच
प्यार समझती है !
इस प्यार के लिए
हजारों कप चाय ठंडी करूंगा
तुम्हारे स्वत्व पूर्ण उलाहने को सहूँगा ।

धर्म पाण्डेय

One thought on “कविता : चाय

  • विजय कुमार सिंघल

    हा हा हा हा … बढ़िया !

Comments are closed.