कविता

देश के गद्दारो को समर्पित मेरे भाव …

 

कैसी इंसानियत है यह तुममे
कैसा यह गज़ब ढाते हो
खाते हो जिस थाली में खाना
उसी में छेद करने चले आते हो
कुछ तो शर्म आँखों में रखते तुम
देश के नमक की तो लाज रखते तुम
क्यों हर बार अपनी गद्दारी दिखा जाते हो
खाते हो जिस थाली में खाना
उसी में छेद करने चले आते हो
लाज आती है अब हमको
क्यों हम खुद पर ऐसा जुल्म ढाते है
तुम जैसे सांपो को हम क्यों
अपनी आस्तीन में पालते है
किन्तु भूल गये तुम एक बात
जो पालन जानते है सांप को
वो तोडना भी जानते है उनके दांत
क्यों हर बार जहर उगल दिखाते हो
खाते हो जिस थाली में खाना
उसी में छेद करने चले आते हो
मगर अब बस बंद करो
अपनी हैवानियत का यह गंदा नाच
गर आए हम अपने पर तो दिखा देंगे
तुमको तुम्हारी असली औकात
गर नही पसंद तुम्हे शान्ति तो
वतन से क्यों नही जाते हो
खाते हो जिस थाली में खाना
उसी में छेद करने चले आते हो
यह देश उन वीरो का है
जिसने देश की रक्षा की
भारत माँ की शान के लिए
अपने प्राणों की न परवाह की
क्यों ऐसे वीरो के हाथ
अपने लहू से गंदे करवाते हो
खाते हो जिस थाली में खाना
उसी में छेद करने चले आते हो ।

प्रिया वच्छानी 

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

2 thoughts on “देश के गद्दारो को समर्पित मेरे भाव …

  • हम कमर कस लें…..ये गद्दार अपनेआप समाप्त हो जायेंगे बिना तीर-तलवारों के…….हम ही बिखरे हैं……….वन्दे मातरम

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार ! देश में गद्दारों की बड़ी संख्या है. उनको ख़त्म करना आवश्यक है.

Comments are closed.