ग़ज़ल
उसका चेहरा है क्यूँ उतरा जनाब मत पूछो।
लगा है हुश्न पर पहरा जनाब मत पूछो ।।
मुद्दई और गवाहों की जरुरत क्या थी ।
फिर वो पेशी से है मुकरा जनाब मत पूछो।।
हम इंकलाब ए मुहब्बत की खबर लाये थे।
हो गया मुल्क का सहरा जनाब मत पूछो ।।
इस रियासत की ईट में है फना की फितरत।
कैसे झंडा यहां फहरा जनाब मत पूछो ।।
हूर ए चिलमन के उठाने से कहर बरपा है।
जमी से चाँद है गुजरा जनाब मत पूछो ।।
आलिमो ने यहाँ दरियाफ्त गुफ्त गूँ कर ली।
खतो के दर्द का मिसरा जनाब मत पूछो।।
मुद्दतों बाद आशियाँ भी मिल गया दिल में ।
रास्ता क्यूँ हुआ सकरा जनाब मत पूछो।।
सियाह शब् में इन्तजार ए जख्म का मंजर।
फिर मुकम्मल यहाँ ठहरा जनाब मत पूछो ।।
सिलवटें फिर शिनाख्त कर गयीं बेचैनी की।
क्यों गिरा जुल्फ से गजरा जनाब मत पूछो।।
— नवीन मणि त्रिपाठी
बहुत शानदार ग़ज़ल !