कविता

अनमोल रत्न

कोयल जब कुंहके बगिया में
बुलाते उसे बड़े प्यार से,
सुनकर कौए की बोली
हम भगाते हैं दुत्कार के।

दोनों का रुप काला ही है
फिर क्यों है ऐसा अंतर,
सबके बस में कर दे
ये मीठी बोली का मंतर।

खुशियों का कमल खिलाती है
ये प्यार का बीज बोती है,
दुश्मन को भी दोस्त बना दे

इतनी शक्ति इसमें होती है।

मीठी बोली बोलने से
बाग-बाग हो जाता दिल,
ये सुलभ अनमोल रत्न है
इसमें नहीं कुछ भी मुस्किल।

पत्थर दिल भी मोम बनाकर
मीठी बोली करती है राज,
फिर क्यों कर्कश बोली बोलें
हम भी इसका पहनें ताज।

कर्णकटु न बात बोलें हम
न ही किसी का करें अपमान,
सत्य,प्रिय और मधुर बोलें
ये है कामधेनू समान।

कुछ भी बोलने से पहले
हम अपने मन में तौलें,
जब भी अपना मूँह खोलें
मीठी बोली ही बोलें।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

3 thoughts on “अनमोल रत्न

  • दीपिका कुमारी दीप्ति

    हार्दिक धन्यवाद आप सब का !

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !! मीठी बोली है विकसित फूलों की डाली !

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