अनमोल रत्न
कोयल जब कुंहके बगिया में
बुलाते उसे बड़े प्यार से,
सुनकर कौए की बोली
हम भगाते हैं दुत्कार के।
दोनों का रुप काला ही है
फिर क्यों है ऐसा अंतर,
सबके बस में कर दे
ये मीठी बोली का मंतर।
खुशियों का कमल खिलाती है
ये प्यार का बीज बोती है,
दुश्मन को भी दोस्त बना दे
इतनी शक्ति इसमें होती है।
मीठी बोली बोलने से
बाग-बाग हो जाता दिल,
ये सुलभ अनमोल रत्न है
इसमें नहीं कुछ भी मुस्किल।
पत्थर दिल भी मोम बनाकर
मीठी बोली करती है राज,
फिर क्यों कर्कश बोली बोलें
हम भी इसका पहनें ताज।
कर्णकटु न बात बोलें हम
न ही किसी का करें अपमान,
सत्य,प्रिय और मधुर बोलें
ये है कामधेनू समान।
कुछ भी बोलने से पहले
हम अपने मन में तौलें,
जब भी अपना मूँह खोलें
मीठी बोली ही बोलें।
-दीपिका कुमारी दीप्ति
हार्दिक धन्यवाद आप सब का !
बहुत खुब
वाह वाह ! बहुत खूब !! मीठी बोली है विकसित फूलों की डाली !