कोई विद्वान या धर्मगुरू ईश्वर कभी नहीं हो सकता
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का ग्रीष्मकालीन अर्धवार्षिक उत्सव आरम्भ
आज दिनांक 6 मई, 2015 को वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का ग्रीष्मकालीन अर्धवार्षिक उत्सव हर्षोल्लास से आरम्भ हुआ जो रविवार 10 मई, 2015 को सम्पन्न होगा। आज आयोजन के आरम्भ में एक अनेक कुण्डों यज्ञ हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा योगधाम, ज्वालापुर, हरिद्वार के संचालक स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती थे। यज्ञ के पश्चात प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री उदयवीर जी के मधुर भजन हुए। उनका एक भजन था – “दो घड़ी भगवान को सिर झुका के देख ले। दीन बन्धु की शरण एक बार जाकर देख ले।। मां की गोदी में सुरक्षित बैठ करके देख ले, तू भी उस ईश्वर की गोद में आसन जमा के देख ले।। गंगा यमुना तीर्थों पर आ रहा तू कभी जा रहा, मन के मन्दिर में दो दीपक जला के देख ले। कौन है उलझन है ऐसी जिसको तू सुलझा रहा, उलझनों से अब तो अपना दामन बचा के देख ले।। जो हो गया सो हो गया आगे का कुछ तो ख्याल कर, फिर कोई बेमोल नगमा गुनगुना के देख ले।” आपने कुछ अन्य भजन भी प्रस्तुत किये और जीवन को ऊंचा उठाने वाली कई महत्वपूर्ण बातें धमप्रमियों को बताईं।
आज के प्रथम सत्र का मुख्य प्रवचन आचार्य उमेश जी ने किया। आपने कहा कि पौराणिक बन्धु हम पर आरोप लगाते हैं कि हमारे पास कोई पूजा पद्धति नहीं है। हम आर्यसमाजी किसी देवी देवता को नहीं मानते। यज्ञशाला में बस स्वाहा-स्वाहा करते रहते हैं। आपने प्रश्न किया कि क्या यह आरोप सही है? क्या आर्यसमाज के लोग वस्तुतः ईश्वर विश्वासी नहीं हैं? उत्तर देते हुए विद्वान वक्ता ने कहा कि संसार में आर्यसमाज की पूजा पद्धति ही श्रेष्ठ है। यज्ञ के द्वारा देवताओं का पूजन होता है। देवता कहते किसे हैं? इसके उत्तर में विद्वान वक्ता ने यजुर्वेद के चौदहवें अध्याय का बीसवां मन्त्र प्रस्तुत किया। इस मन्त्र में ईश्वर ने बताया है कि सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, जल, वायु, सभी वनस्पतियां आदि पदार्थ देवता हैं। फिर वक्ता ने प्रश्न किया कि पूजा का अर्थ क्या है? उन्होंने कहा कि पौराणिक बन्धु तो पूजन का अर्थ भी नहीं जानते। वह हमें बतायें कि वह सूर्य व चन्द्रमा की पूजा कैसे करेंगे? आपने सूर्य व चन्द्र की पृथिवी से दूरी, उनके तथा परिमाण आदि का वर्णन किया। वह श्रोताओं से बोले कि बताओं कि क्या सूर्य व चन्द्रमा को माला, तिलक भेंट करेंगे और पूरी व खीर आदि का भोग लगायेंगे? वायु देवता का पूजन कैसे व किस प्रकार से होगा? विद्वान आचार्य उमेश जी ने कहा कि हमारे ऋ़षियों ने इन प्रश्नों के उत्तरों की खोज की। हमारे सभी ऋषि वैज्ञानिक थे। खोज करने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि सभी देवताओं का मुख अग्नि है। इस खोज से स्पष्ट हुआ कि देवताओं का भोग अग्नि के माध्यम से लगेगा। अग्नि के द्वारा ही देवताओं को हमारा भाग पहुंचता है। उन्होंने कहा कि अग्नि मैटर को ऊर्जा में बदल देता है। देवता जड़ पदार्थ हैं और दिव्य गुणों से सम्पन्न हैं। उन्होंने कहा कि जल देवता है और यह हमें जीवन देता है। वायु का महत्व इससे भी अधिक है। वायु के बिना हम कुछ क्षण ही जीवित नहीं रह सकते हैं, इसलिए वायु भी देवता है। विद्वान वक्ता ने भोपाल गैस त्रासदी का उदाहरण देकर कहा कि वायु की अशुद्धता के कारण ही वहां सैकड़ों लोग मारे गये थे और अनेक विकलांग हो गये थे। इससे शुद्ध वायु के महत्व का पता चलता है। पृथिवी को भी आपने देवता बताया और कहा कि इससे हमें अन्न व आश्रय मिलता है। सूर्य प्रकाश व गर्मी देने के कारण देवता है। यह सभी देवता हमारे प्राणों की रक्षा कर रहे हैं। इस लिए हमें इन व अन्य सभी देवताओं का पूजन करना है। इनको शुद्ध रखना ही इनकी पूजा करना है। वायु, जल, पृथिवी व वनस्पतियों को शुद्ध रखने से हमें अधिकाधिक लाभ होगा।
आचार्य उमेश जी ने कहा कि सूर्य की रश्मियों के द्वारा यज्ञ में दी गईं हमारी आहुतियां सूर्य तक पहुंचती हैं। उन्होंने कहा कि यज्ञ में शुद्ध गोघृत का ही प्रयोग करना चाहिये। आर्य समाज की पूजा पद्धति को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ पूजा पद्धति बताया। उन्होंने बताया कि देश में छः हजार गांव है परन्तु हमने वहां पहुंच कर प्रचार ही नहीं किया ह, इसलिए देश भर में अज्ञानता फैली हुई है। उन्होंने बताया कि देश के लोगों को यह भी नहीं पता कि वेदों का आकार प्रकार कैसा है? लोगों ने वेदों के बारे में नाना प्रकार की कल्पनायें कर रखीं हैं। अधिकांश लोगों ने वेदों के दर्शन ही नहीं किये हैं। उन्होंने अधिकारियों को कहा कि सत्संग के समय वेदी पर चारों वेदों को रख दिया करें जिससे सत्संग में आने वाले सभी लोग वेदों का साक्षात दर्शन कर सकें। विद्वान वक्ता ने कहा कि आर्यसमाज वेदों का प्रचार करता है। वेदों का प्रचार हमें जिन मनोवैज्ञानिक तरीकों से करना था, वैसा हम कर नहीं पाये। उन्होंने यह भी कहा कि यज्ञों पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाया जाता है। कहा जाता है कि यज्ञ तो हिन्दुओं का कर्मकाण्ड है। उन्होंने पूछा की क्या ईसाई और मुसलमानों को शुद्ध वायु नहीं चाहिये? यदि वह अपने सभी कर्मकाण्डों के साथ यज्ञ भी किया करें तो इससे लाभ ही होगा, हानि कुछ नहीं होगी। आचार्य उमेश जी ने कहा कि सभी प्राणी सुखी व निरोग रहना चाहते हैं। यज्ञ करने से सुखों की प्राप्ति एवं निरोगिता प्राप्त होती है। वर्षा का जल भी यज्ञ करने से शुद्ध व पवित्र होता है। विद्वान वक्ता ने कहा कि यज्ञ सर्वश्रेष्ठ पूजा पद्धति है। सभी जड़ देवताओं को शुद्ध व पवित्र रखना ही देवताओं की पूजा है।
श्री आचार्य उमेश ने कहा कि देवता चेतन भी होते हैं। पहला चेतन देवता हमारी सबकी मातायें हैं। दूसरा देवता पिता हैं जो अपनी सन्तानों के पालन पोषण के कठोर परिश्रम करते हैं। आचार्य, अतिथि, वानप्रस्थी व सन्यासी भी देवता हैं क्योंकि यह अज्ञान मिटाने के साथ सत्य का सर्वत्र प्रचार करते हैं। उन्होंने कहा कि विद्वान पहले तप करता है फिर वह संसार में ज्ञान का प्रकाश करता है। शरीरधारी देवताओं की पूजा भोजन, वस्त्र, ओषधि व धन आदि देकर तथा उनकी सेवा करके की जाती है। इसी से यह शरीरधारी देवता प्रसन्न व तृप्त होते हैं। विद्वान वक्ता ने कहा कि यज्ञ द्वारा जड़ व चेतन दोनों प्रकार के देवताओं की पूजा होती है। उन्होंने कहा कि पौराणिकों को यह नहीं पता की देवता कितने प्रकार के व कौन-कौन हैं और उनकी पूजा के प्रकार क्या-क्या हैं? विद्वान वक्ता ने मुम्बई के घाटकोपार की एक सम्पन्न महिला का उदाहरण दिया जो अपनी आदतों पर धन का अपव्यय करती थी। एक बार संयोगवश आर्य समाज के सत्संग में आने पर उसका जीवन बदल गया और वह झुग्गी झोपडि़यों में जाकर वहां के बच्चों के साथ समय बिताने लगी जिससे उसे स्वयं भी सन्तोष का लाभ हुआ साथ ही समाज में भी उसकी प्रशंसा होने लगी।
विद्वान वक्ता ने कहा कि दान देना देवताओं का मुख्य गुण होता है। सूर्य, पृथिवी, चन्द्रमा, वायु, जल, अग्नि आदि सभी दान करने के कारण देवता हैं। उन्होंने कहा कि देवी और देवताओं की रचना करने वाली शक्ति का नाम परमात्मा या ईश्वर है जो कि निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक एवं सर्वज्ञ है। पृथिवी, अग्नि, वायु, जल, विद्वान, हमारे माता, पिता आदि सभी को ईश्वर ने ही बनाया है। सृष्टि का प्रत्येक अपौरूषेय पदार्थ ईश्वर का बनाया हुआ है। मिट्टी को भी उसी ईश्वर ने बनाया है। मनुष्य मिट्टी भी नहीं बना सकता। ईश्वर ही माता के गर्भ में भ्रूण व शिुश की रचना व उसकी रक्षा करता है। उन्होंने आगे कहा कि महर्षि दयानन्द जी से पहले किसी को भी देवताओं तथा ईश्वर के बीच अन्तर का पता नहीं था। उन्होंने कहा कि आज भी पौराणिकों को ईश्वर व देवताओं के बीच के अन्तर का ज्ञान नहीं है। विद्वान वक्ता ने कहा कि आर्यसमाज ईश्वर के बनाये हुए देवताओं का पूजन वैदिक विधि से करता है। उन्होंने कहा कि पौराणिक छेनी व हथौड़ी से स्वयं या किसी मूर्तिकार द्वारा बनायें देवता या मूर्ति का पूजन करते हैं। विद्वान वक्ता ने यह भी कहा कि मनुष्य देवताओं की रचना नहीं कर सकते। मनुष्य मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा भी नहीं कर सकते। प्राण प्रतिष्ठा करना केवल ईश्वर का काम है, इसे अन्य कोई नहीं कर सकता। मूर्तिपूजा व ऐसे सभी कार्य अविद्या के कार्य हैं। इससे किसी प्रकार का कोई लाभ किसी को नहीं होता। मूर्ति पूजा से न लोक बनता है और न परलोक। अन्तःकरण केवल यज्ञ करने से या ईश्वर की उपासना करने से शुद्ध होता है। उन्होंने कहा कि यज्ञ करने से अन्य भी अनेक लाभ होते हैं। यज्ञ से हमें शुद्ध वायु मिलती है जिससे हमें लाभ होता है। यज्ञ करना संसार में सब दानों में सबसे बड़ा दान है। यज्ञ से शुद्ध वायु का लाभ मनुष्यों सहित पर्यावरण, वनस्पतियों तथा प्राणी जगत को भी होता हैं। विद्वान वक्ता ने वैदिक साहित्य के आधार पर कहा कि यज्ञ में दी गई आहुतियां हमारे भावी जन्मों में हमारे आगे आगे चलती हैं और हमें लाभ पहुंचाती हैं। इसी प्रसंग में वक्ता ने पुनः भोपाल गैस त्रासदी की चर्चा की और कहा कि भोपाल में हजारों लोगों की वायु की अशुद्धि के कारण मृत्यु हो गई और उनका करोड़ों रूपयों का धन यहीं रखा रह गया। उन्होंने कहा कि धन से रक्षा नहीं होती अपितु शुद्ध वायु से होती है।
आचार्य उमेश जी ने कहा कि ईश्वर वह निराकार व चेतन सत्ता है जो सृष्टि को बनाती है व इसे चलाती है। हम आंखों से उन्हीं पदार्थों को देख पाते हैं जो पंचतत्वों से बने होते हैं। क्योंकि ईश्वर व जीवात्मा पंचतत्वों से मिलकर नहीं बने हैं, अतः इनका आंखों से दिखाई देना सम्भव नहीं है। विद्वान वक्ता ने इस बात का खण्डन किया कि कोई मनुष्य, विद्वान या धर्मगुरू ईश्वर हो सकता है। उन्होंने कहा कि ईश्वर और देवता अलग-अलग हैं। देवताओं की रचना ईश्वर करता है। ईश्वर की उपासना व ध्यान से देवताओं की पूजा हो जाती है। आचार्य उमेश जी ने पानीपत आर्य समाज की एक प्रेरणाप्रद घटना सुनाई। उन्होंने कहा कि एक बार वहां विशेष आयोजन में एक श्री फूलसिंह पटवारी को यजमान बनाया गया था। यज्ञ की समाप्ति पर यज्ञ के ब्रह्मा ने इनसे दक्षिणा मांगी और कहा कि धन की दक्षिणा नहीं आप अपनी एक बुराई छोड़ने का संकल्प लें। पटवारी जी ने कहा कि आप सुझाव दीजिए कि कौन सी बुराई छोड़नी है, मैं उस बुराई को छोड़ दूंगा। यज्ञ के ब्रह्मा ने उन्हें सत्य बोलने का प्रण लेने को कहा। पटवारी जी सहमत हो गये। घर गये तो अपने प्रण को याद कर झूठ बोलना बन्द कर दिया। रिश्वत लेना तो छोड़ा ही मकान बेच कर किराये के मकान में रहने लगे। कहते थे कि मकान भी रिश्वत के पैसे से खरीदा था। लोगों से अतीत में जो रिश्वतें लीं थीं उसे याद कर-करके लौटाने लगे। एक जाट चैधरी ने रिश्वत की राशि वापिस लेने से मना कर दिया। बोले कि मैंने तो काम कराने के लिए पैसे दिये थे। आपने काम कर दिया था, बात खतम हो गई। दोनों में जमकर बहस हुई। पटवारी जी उसके पैरों में गिर गये परन्तु चैधरीजी नहीं माने। दोनों की सहमति से उन पैसों से गांव की एक गरीब बालिका का विवाह करा दिया गया। अब पटवारी जी का यश व कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। लोग उनसे मिलते तो उनके पैर छूते। लोग उनको श्वत ते तो उन्हें कहते कि मुझे इस काम को करने का वेतन मिलता है। विद्वान वक्ता ने कहा कि सत्य बोलने के एक संकल्प ने ही श्री फूलसिंह पटवारी के जीवन की काया पलट दी। कलुषित जीवन आर्यसमाज के सम्पर्क में आकर सुधर गया। इस प्रकार से यज्ञ करने से अनेकानेक लाभ होते हैं। इसी कारण शास्त्रों में यज्ञ को विष्णु व श्रेष्ठतम कर्म की उपमा दी गई है। इस घटना को सुनकर सभी धर्मप्रेमी भी भावविभोर हो गये।
उपदेश के पश्चात “ओ३म्” ध्वजारोहण हुआ। वैदिक राष्ट्रगीत का सबने उच्च स्वर से पाठ किया। तपोवन विद्या निकेतन की छात्राओं ने ध्वज गीत का सामूहिक पाठ किया जिसे धर्मप्रेमी श्रद्धालुओं ने भी गाकर दोहराया। डा. वीरपाल विद्यालंकार जी सहित कई विद्वानों के इस अवसर पर संक्षिप्त प्रवचन हुए। सभी कार्यक्रमों का संचालन श्री उत्तम मुनि जी ने योग्यतापूर्वक किया। आश्रम में आर्य साहित्य का एक स्टाल भी लगाया था जहां श्रद्धालुओं ने धार्मिक साहित्य क्रय किया। आयोजन में न्यास के प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री एवं मन्त्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा सहित देश के विभिन्न भागों से आये धर्मप्रेमी श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
–मनमोहन कुमार आर्य
One may not take away art of living of Pundits who earn their livelihoods through performing rituals.Lately rituals have become a way of life.Don’t let these pundits go after your wallets.
बहुत अच्छा लेख या समाचार !
हार्दिक धन्यवाद श्री विजय जी. मेरी लिखने की गति कुछ कम है। मैंने फिर भी कोशिश की है कि वक्ता के अधिक से अधिक विचारों को प्रस्तुत कर सकूँ।