इतिहास

अशोक का कालसी शिलालेख

मौर्य सम्राट अशोक की गणना  विश्व के महान शासकों में की जाती है | उसने अपने विशाल साम्राज्य में अनेक स्तूपों, विहारों, शिलालेखों, स्तम्भ लेखों व गुहा लेखों की स्थापना कराई थी तथा उनके माध्यम से वह देश में लोक कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना को मूर्त्त स्वरुप  प्रदान करना चाहता था | अभी तक हमें उसके चौदह शिलालेख ,सात स्तम्भ  लेख  तथा तीन गुहा लेख  भारत के विभिन्न स्थानों से मिले हैं जिनसे तत्कालीन भारत की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थितियों पर व्यापक रूप से प्रकाश पड़ता है |

जहाँ तक अशोक के कालसी शिलालेख की बात है , यह शिलालेख देहरादून जनपद मुख्यालय से चकराता राजमार्ग पर लगभग ५० कि० मी० दूर यमुना नदी के तट पर कालसी प्रखण्ड में अवस्थित है तथा भारतीय पुरातत्वसर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है | ब्रिटिश शासनकाल में १८६० इ० में फारेस्ट महोदय ने इस शिलालेख किखोज की थी | यह अभिलेख एक विशाल चट्टान पर उत्कीर्ण है जिसका ऐतिहासिक तिथिक्रम २५८ इ० पू० माना गया है | इस अभिलेख की भाषा प्राकृत तथा लिपि मौर्यकालीन ब्राह्मी है | यह लिपि बायीं ओर से दाहिनी ओर को उसी प्रकार लिखी जाती थी, जिस प्रकार अन्य विभिन्न भारतीय भाषाओं कि लिपियाँ लिखी जाती है; किन्तु उस समय अक्षरों के ऊपर शिरोरेखा का प्रयोग बिलकुल नहीं किआ जाता था | अशोक के अभिलेकों के पढने का श्रेय जेम्स प्रिंसेप महोदय को दिया जाता है जिन्होंने १८३७ इ० में प्रथम बार उक्त अभिलेखों को पूर्णतः पढने में सफलता पायी |

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यहाँ पर कालसी शिलालेख के  हिंदी अनुवाद को प्रख्यापित किआ गया है ताकि जिज्ञासु जन व अध्येता मौर्य सम्राट के मंगलकारी संदेशों व उद्घोषनाओ का निहितार्थ भलीभांति समझ सकें |

देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने ऐसा कहा |लोग बहुत से मंगल (मंगलाचार )करते हैं |विपत्ति में लड़के,लड़कियों के विवाहों में,लड़का या लड़की के जन्मपर ,परदेश जाने के समय_इन और अन्य अवसरों पर लोग तरह –तरह के मंगलाचार करते हैं |पर इन अवसरों  पर माताएं और पत्नियाँ तरह-तरह के बहुत से क्षुद्र और निरर्थक मंगलाचार करती हैं |

मंगलाचार करना चाहिए |किन्तु इस प्रकार के मंगलाचार अल्प फलदायी होते हैं |पर जो धर्म का मंगलाचार है ,वह महाफल देने वाला है |इस मंगलाचार में यह होता है :दास और सेवकों के प्रति उचित व्यवहार ,गुरुओं का आदर ,प्राणियो की अहिंसा ,ब्राह्मणों व श्रमण सन्यासियो को दान और इसी प्रकार के अन्य कामों को धर्म मंगल कहते हैं |

अतः पिता या पुत्र या भाई या स्वामी या मित्र या परिचित या पणोसी सभी से कहें ,”यह मंगलाचार अच्छा है ; इसे तब तक करना चाहिए, जब तक कार्य की सिद्ध न हो जाय |”क्योंकि जो दूसरे मंगलाचार हैं वे अनिश्चित फल देने वाले हैं |उनसे उद्देश्य की सिद्ध न हो और यह इहलोक के लिए ही है |पर धर्म का मंगलाचार सब काल के लिए है |यदि इहलोक में उद्देश्य कि सिद्ध न भी हो तो भी परलोक में अनंत पुण्य मिलता है |किन्तु यदि इहलोक में अभीष्ट की प्राप्ति हो जाय तो धर्म के मंगलाचार से दो लाभ होंगे :इहलोक में अभीष्ट की सिद्ध और परलोक में अनंत पुण्य की प्राप्ति |

देवताओं का प्रिय प्रियदर्शी राजा यश व कीर्ति को बहुत भारी वस्तु नहीं समझता सिवाय इसके कि जो कुछ भी यश व कीर्ति वह चाहता है ताकि प्रजा धर्म की सेवा और धर्म के व्रत में सम्प्रति और भविष्य में भी दृढ़ हो | अतःदेवताओं का प्रिय प्रियदर्शी राजा यश और कीर्ति की कामना करता है |जो कुछ भी पराक्रम वह करता है ,उसे परलोक के लिए ही करता है ताकि सभी बंधन से मुक्त हो जाएँ |जो अपुण्य [पाप] है ,वही बंधन है |निरंतर पूर्व प्रयत्न ,सर्वस्व त्याग के बिना कोई भी मनुष्य ,चाहे वह छोटी या विशाल प्रतिष्ठा का हो ,यह कार्य नहीं कर सकता |इन दोनों में महान  व्यक्ति के लिए तो यह और भी कठिन है |

कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने अपने जीवन में कोई दूसरा युद्ध नहीं किया |उसके ह्रदय में युद्ध के प्रति घृणा उत्पन्न हो गयी थी |कालांतर में वह बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था |कालसी शिलालेख में उसने हाथी की आकृति उत्कीर्ण करवायी जिसके नीचे ‘गजतमे’शब्द उत्कीर्ण है |उक्त हाथी को आकाश से उतरता दिखाया गया है जिसे इस रूप में माता के गर्भ में  भगवान बुद्ध के आने का आभास होता है |अशोक के धौली[कलिंग ] शिलालेख में भी हाथी की आकृति उकेरी गयी है जो उसके बौद्ध धर्मानुयायी होने का द्योतक है |

—  वेद प्रताप सिंह 

 

वेद प्रताप सिंह

पता: ३/५४ नवीन सचिवालय कालोनी केदारपुरम, देहरादून , उत्तराखंड मोबाइल नंबर ९८९७३९२२१४ E mail vpsvedsingh@gmail. com

3 thoughts on “अशोक का कालसी शिलालेख

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वेद परताप सिंह जी , लेख बहुत अच्छा लगा . जिंदगी में पहली दफा किसी शिलालेख का ट्रांसलेशन पड़ा . उम्मीद है ऐसे पुराने शिलालेखों के ट्रांसलेशन आप और भी पेश करेंगे .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा जानकारीपूर्ण लेख.

    • वेद प्रताप सिंह

      यआदर

      महोदय

      मैं पुरातत्व से संबंधित ले ख लिखता रहा हूँ।
      बहुत खुश

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