आसमां से ऊपर आशियाँ बनायेंगे
आसमां से ऊपर हम अपना आशियाँ बनायेंगे
मेहनत से तिनके जोड़-जोड़ के उसको हम सजायेंगे
बढ़े कदम पीछे न हों हर राह पर हमको चलना है
ऐ दिल जरा तू सब्र कर वक्त से आगे निकलना है
राह के काँटे को फूल बनाके तेजाब का दरिया पार करेंगे
हवाओं का रुख बदलकर हम हौसलों से उड़ान भरेंगे
हिम्मत नहीं कमजोर पड़े दम हो अपनी बातों में
दिन ढले तो ढलने दो सूरज उगायेंगे रातों में
जितना भी ले तू अग्निपरीक्षा पा लेंगे मंजिल ऐ वक्त
हार हमें मंजूर नहीं इस दिल को है जीतने की लत
हम रोते नहीं हैं दोष देके भाग्य और तकदीर को
हथेली चीरकर खुद बदलते किस्मत की लकीर को
दुख-दर्द को अपनाके हम करते खुशियों से यारी
जीत जरुर मिलेगी चलो करें जश्न की तैयारी
— दीपिका कुमारी दीप्ति
बहुत बहुत धन्यवाद सर मेरी त्रुटियों को बताने के लिए !
वाह वाह!!
कविता के भाव अच्छे हैं, लेकिन चाँद और शिल्प की दृष्टि से कविता बहुत कमजोर है. वर्तनी की ढेर सारी गलतियाँ तो मैंने ठीक कर दी हैं.