धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

प्रभातवेला में ईश्वर से किस प्रकार व क्या प्रार्थना करें?

वैदिक जीवन का एक नित्य कर्तव्य

वेद ईश्वरीय ज्ञान है। सृष्टि के आरम्भ में संसार के सभी मनुष्य वेदों के अनुसार ही जीवन व्यतीत करते आयें हैं। रात्रि को मनुष्यों को कब सोना चाहिये, प्रातःकाल कब जागना चाहिये और प्रथम क्या कर्तव्य हैं, इसका उल्लेख वेदों के आधार पर महर्षि दयानन्द ने संस्कारविधि पुस्तक में किया है। वह लिखते हैं कि ‘‘सदा स्त्री-पुरुष 10 बजे शयन और रात्रि के पिछले प्रहर वा 4 बजे उठके प्रथम हृदय में परमेश्वर का चिन्तन करके धर्म, अर्थ का विचार करना और धर्म और अर्थ के अनुष्ठान वा उद्योग करने में यदि कभी पीड़ा भी हो तथापि धर्मयुक्त पुरुषार्थ को कभी छोड़ना चाहिये, किन्तु सदा शरीर और आत्मा की रक्षा के लिए युक्त आहार-विहार, औषध-सेवन, सुपथ्य आदि से निरन्तर उद्योग करके व्यवाहारिक और पारमार्थिक कत्र्तव्य-कर्म की सिद्धि के लिए ईश्वरोपासना भी करनी कि जिस से परमेश्वर की कृपा दृष्टि और सहाय से महाकठिन कार्य भी सुगमता से सिद्ध हो सके। इसके लिए निम्नलिखित मन्त्रों से ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए।”

ओ३म् प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना। प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम।।1।।

 प्रातर्जितं भगमुग्रं हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता। आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याह।।2।।

 भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगे मां धियमुदवा ददन्नः। भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्नृवन्तः स्याम।।3।।

 उतेदानीं भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अन्हाम्। उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम।।4।।

 भग एव भगवां अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम। तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीति नो भग पुरएता भवेह।।5।।                                                                                                                                                                                              ऋग्वेद 7.41.1-5

 इन मन्त्रों के अर्थ क्रमशः इस प्रकार से हैं। प्रथम मन्त्रः विद्वान और उपदेशक लोगों की ही तरह हम प्रभातवेला में स्वप्रकाशस्वरूप, परमैश्वर्य के दाता और परमैश्वरर्ययुक्त, प्राण-उदान के समान प्रिय और सर्वशक्तिमान्, सूर्य-चन्द्र को जिसने उत्पन्न किया है उस परमात्मा की स्तुति करते हैं। प्रातः भजनीय, सेवनीय, ऐश्वर्ययुक्त, पुष्टिकत्र्ता, अपने उपास्य, वेद और ब्रह्माण्ड के पालन करनेहारे और अन्तर्यामी, प्रेरक और पापियों को रुलानेहारे तथा सर्वरोगनाशक जगदीश्वर की हम स्तुति और प्रार्थना करते हैं। द्वितीय मन्त्रः प्रातः ब्राह्ममुहूर्त में पांच घड़ी रात्रि शेष रहे – जयशील, ऐश्वर्य के दाता, तेजस्वी, अन्तरिक्ष के पुत्ररूप सूर्य की उत्पत्ति करने और जो सुर्य्यादि लोकों को विशेषरूप से धारण करनेवाला है, उस परमेश्वर की हम उपासक लोग स्तुति करते हैं। जो सब ओर से धारणकर्त्ता, जिस किसी का भी, अर्थात् प्रत्येक पदार्थ का जाननेवाला, दुष्टो को दण्ड देनेवाला और सबका प्रकाशक है और जिस भजनीयस्वरूप परमेश्वर का मैं सेवन करता हं, स्तुति करता हूं। उसी परमेश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना के लिए अन्यों को भी उपदेश करता हूं। तृतीय मन्त्रः हे भजनीयस्वरूप ! सबके उत्पादक, सत्याचार में प्रेरक, ऐश्वर्यप्रद, सत्यधन को देने हारे, सत्याचरण करनेहारों को ऐश्वर्यदाता परमेश्वर ! आप हमें इस प्रज्ञा को दीजिए और उसके दान से हमारी रक्षा कीजिए। आप गाय और घोड़े आदि उत्तम पशुओं के योग से राज्यश्री को हमारे लिए प्रकट कीजिए। आपकी कृपा से हम लोग उत्तम मनुष्यों से बहुत वीर मनुष्यवाले अच्छी प्रकार होवें। चतुर्थ मन्त्रः हे भगवन्! आपकी कृपा और अपने पुरुषार्थ से हम लोग इस सूर्य के उदयकाल में ऐश्वर्यशाली हों और दिन के मध्यभाग मध्यान्ह में ऐश्वर्य से युक्त हों तथा सूर्यास्त के समय सायंकाल में ऐश्वर्य से युक्त हों। हे परमपूजित, असंख्य धनप्रदाता परमात्मन् ! हम लोग देवपुरुषों की उत्तम प्रज्ञा और सुमति में तथा उत्तम परामर्श में सदा रहें। पंचम मन्त्रः हे सकल ऐश्वर्यसम्पन्न जगदीश्वर ! जिससे सब सज्जन निश्चय ही आपको पुकारते हैं, आपकी प्रशंसा और गुणगान करते हैं, हे ऐश्वर्यप्रद ! आप इस संसार में हमारे अग्रणी, नेता अर्थात् आदर्श, शुभकर्मों में प्रेरित करनेवाले हों। पूजनीय देव परमात्मा ही हमारा ऐश्वर्य हो। आपके कृपाकटाक्ष से हम विद्वान् लोग सकल ऐश्वर्यसम्पन्न होकर, सब संसार के उपकार में तन-मन-धन से प्रवृत्त होवें।

प्रातः सोकर उठने के साथ सर्वप्रथम इन पांच मन्त्रों का उच्चारणकर कर ईश्वर की स्तुति व प्रार्थना का विधान है। जो भी मनुष्य इन मन्त्रों का अर्थ सहित पाठ करते हैं, ईश्वर सर्वव्यापक एवं सर्वान्तर्यामी होने के कारण उनकी प्रार्थनायें सुनता है और स्तोता की पात्रता के अनुसार उसको मेधा बुद्धि, ऐश्वर्य, स्वास्थ्य, सुख, समृद्धि से सम्पन्न करता है। स्तोता को इस बात का ध्यान रखना है कि वह शुद्ध मन से एकाग्र चित्त होकर इन मन्त्रों का पाठ करे और दिन भर इन शिक्षाओं के अनुरूप पुरूषार्थमय जीवन व्यतीत करे। हम अनुमान करते हैं कि इसका पालन करते हुए इन प्रार्थनाओं को अपने जीवन का अंग बनाने से स्तोता व प्रार्थना के करने वाले को इतने अधिक लाभ हो सकते हैं जिसकी सम्भवतः हम कल्पना भी नहीं कर सकते। हमने इस विषय में संकेत मात्र करना उचित समझा। महर्षि दयानन्द रचित सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्याभिविनय और वेदभाष्य आदि ग्रन्थों को पढ़कर व उनके अनुसार अपना जीवन बनाकर यशस्वी एवं पारमार्थिक जीवन बनाया जा सकता है जिससे हमारा समाज व देश लाभान्वित होता है। भावी पीढि़यों और सन्ततियों का सुधार भी होता है। आशा है कि पाठक इससे लाभान्वित होंगे।

मनमोहन कुमार आर्य

4 thoughts on “प्रभातवेला में ईश्वर से किस प्रकार व क्या प्रार्थना करें?

  • विजय कुमार सिंघल

    ये मन्त्र पहले मुझे भी याद थे, पर फिर भूल गया. अब दुबारा याद करूँगा और रोज प्रातः उठते ही बोला करूँगा.

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते महोदय। हार्दिक धन्यवाद। मुझे आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर प्रसन्नता हुई। यदि परिवार के कुछ अन्य लोग भी इन्हे स्मरण कर सके तो अधिक अच्छा रहेगा। पांच मंत्रो के पाठ में १ मिनट लगता है और अर्थ को पढ़ने में ३ मिनट लगते हैं। इससे होने वाले लाभ की तो कोई सीमा नहीं है। हानि बिलकुल नहीं होगी, यह आप समझते हैं। हार्दिक नमन एवं धन्यवाद।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मनमोहन भाई ,. लेख अच्छा लगा .सोचता हूँ आज कितना समय बदल गिया है .देर रात तक लोग टीवी के आगे बैठे रहते हैं . वोह पुराना समय बहुत अच्छा था .तब जिंदगी में ऐसी कोई बात होती ही नहीं थी , इस लिए सुबह उठाना एक आम बात थी और जब मैं भी छोटा था तो आम लोग पाठ करते दिखाई देते थे . लोग खेतों में जाते जाते पाठ कर लेते थे और एक अँधा गियानी तो हमारे पड़ोस में ही था जिस का नाम इन्दर सिंह था . वोह सुबह ही हरमोनीअम के साथ कीर्तन करता था और मेरी माँ भी हर रोज़ सुबह को धूफ दे कर पाठ करती थी . आज तो दौड़ का ज़माना आ गिया , बस इन्तार्नैत पे ही लोग लगे रहते हैं . लेकिन इस में एक बात तो है कि जिस ने पाठ पूजा करनी है वोह समय निकाल ही लेता है .

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते श्रद्धेय गुरमेल सिंह जी। आपके विचार महत्वपूर्ण एवं अनुकरणीय है। मैं सोचता हूँ कि विज्ञानं ने उन्नति तो अवश्य की है परन्तु इससे लोगो का नैतिक पतन भी हुआ है. बहुत कम लोग होंगे जो विज्ञानं का सदुपयोग करतें हैं। दुरूपयोग करने वाले या तो बराबर होंगे या फिर कुछ अधिक। ईश्वर ने हमारी आत्मा को जन्म और अनेकों सुख दिए है। हमारा पहला फ़र्ज़ उसे जानना और उसकी स्तुति, प्रार्थना व उपासना करना है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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