मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी को खुला पत्र
प्रति,
श्री शिवराज सिंह चौहान
माननीय मुख्य मंत्री, म. प्र. शासन,
मुख्यमंत्री कार्यालय,मंत्रालय, वल्लभ भवन,
भोपाल
विषय : मध्य प्रदेश राजभाषा नीति बनाये जाने हेतु निवेदन
आदरणीय मान्यवर,
मैंने सबसे पहले यह पत्र आपको ईमेल एवं डाक से 1 नवम्बर 2012 को भेजा था जिसपर संस्कृति संचालनालय ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि राज्य में राजभाषा अधिनियम लागू है इसलिए किसी “राजभाषा नीति’ की राज्य को आवश्यकता नहीं है परन्तु सच्चाई यह है कि वह कानून 1956 का है जो वर्तमान समय में उतना उपयोगी नहीं रहा है, जिस तेज़ी से सरकारी अफसर अंग्रेजी में ऑनलाइन सेवाएँ शुरू कर रहे हैं और अंग्रेजी को बढ़ावा दे रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि अन्य राज्यों की तरह आगामी एक दशक बाद मध्यप्रदेश में भी हिन्दी को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा. हिंदी के प्रति आपके प्रेम और समर्पण के लिए आपका जितना भी अभिनन्दन किया जाए कम है। पर मप्र विश्व में हिंदी की पहचान बने इसके लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अब मैं अपनी बात शुरू करता हूँ:
विश्व का कोई भी ऐसा देश जिसे अपने समाज में परिवर्तन लाना है और प्रगति करनी है, विदेशी भाषा पर निर्भर नहीं रह सकता। विशेषकर ऐसा देश जो लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करता हो किसी भी दशा में शासन और ज्ञान की भाषा के लिए जनता की भाषा की जगह औपनिवेशिक भाषा का इस्तेमाल नहीं कर सकता। कोई भी ऐसा देश जिसे अपने आत्मसम्मान का खयाल है, विदेशी भाषा की गुलामी नहीं कर सकता।
आप चीन, जापान, कोरिया के अलावा रूस, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन की तो बात ही छोड़ें यूरोप का छोटे से छोटा देश फिर चाहे वह स्वीडन हो या ग्रीस या पोलैंड या लुथवानिया सब की राजभाषा उनकी अपनी मातृभाषा है, और उन देशों में सारा कामकाज उनकी अपनी भाषा में ही किया जाता है, इन देशों ने सूचना प्रौद्योगिकी के द्वारा अपनी भाषाओं का बहुत विकास किया है, इन छोटे-२ देशों की भाषाओं में दुनिया के ज़्यादातर सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं । विचार करने वाली बात है कि किसी भी यूरोपीय देश कीराजभाषा विदेशी भाषा नहीं है। किसी देश के विकास के लिए ६७ वर्ष का समय कम नहीं होता। अगर हमने जरा भी कोशिश की होती तो प्रशासन, ज्ञान व संपर्क भाषा के सवाल को कब का सुलझा लिया होता पर हमारे शासकों को इस प्रश्न को उलझाए रखना ही श्रेयस्कर लगा । अब भारत के शासन ने सूचना प्रौद्योगिकी के नाम पर हिंदी को काफी पीछे छोड़ दिया है. शर्म की बात तो ये है कि आईटी की विश्व की श्रेष्ठ कंपनियों में गिनी जाने वाली भारतीय कंपनियों ने भी कभी हिंदी के लिए कुछ नहीं किया, ना कभी करने के बारे में सोचा.
अंग्रेजी के तथाकथित अंतर्राष्ट्रीय और ज्ञान की भाषा होने का तर्क कितना बोथरा है इसका सबसे बड़ा जवाब यह है कि अगर अंग्रेजी इतनी ही आवश्यक है तो फिर छोटे से छोटे यूरोपीय देश में यह भाषा अनिवार्य क्यों नहीं है? फ्रांस, जर्मनी और रूस क्या हम से पिछड़े हैं – वैज्ञानिक या सामाजिक प्रगति में अथवा अन्य किसी दूसरे मामले में भी? इन देशों ने अपनी भाषा के दम पर ही विकास किया है। अंग्रेजी की महानता का गीत असल में मानसिक गुलामी का गीत होने के अलावा स्वार्थ का गीत भी है। अंग्रेजी का लगातार विस्तार कर और उसे सरकारी प्रश्रय देकर इस मिथक को मजबूत किया जा रहा है कि भारतीय भाषाएँ इस काबिल हैं ही नहीं कि वे ज्ञान-विज्ञान और प्रशासन की भाषा बन पाएँ
विश्व के दूसरे देश अपनी भाषाओं के लिए क्या कर रहे हैं:
- फ्रांस में ऐसे४००० शब्दों की सूची बनाई गई है जो उनकी भाषा में जबर्दस्ती घुस गए थे। एक विधेयक पारित कर इन शब्दों के फ्रेंच में इस्तेमाल रोकने का आदेश दिया गया। फ्रांसवासियों में स्व-भाषा के प्रति ज़बरदस्त आदर है। वे अपनी भाषा को अंग्रेजी से बेहतर मानते हैं।
- नीदरलैंड में अंग्रेजी हटाने के लिए एक आंदोलन हुआ क्योंकि उनके अनुसार डच भाषा व संस्कृति को इससेख़तरा है।
- चीन, जापान, कोरिया और वियतनाम में सरकारी फरमान या आदेश अंग्रेजी में आने पर जनता तीव्र विरोध प्रकट करती है। जापानी भाषा विश्व की सबसे क्लिष्ट है। उसकी लिपि में५००० से अधिक चिन्ह हैं, लेकिन उसके बावजूद वे हर कार्य अपनी भाषा में ही करना पसंद करते हैं।
- अंग्रेजी के बिना ही जापान नेजबर्दस्त उन्नति की है। जापान इलैक्ट्रॉनिक सामान व उपकरण बनाने में विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त देश है जिसके माल की खपत हर जगह है।
- अनेक देशों जिनमें लीबिया, इराकव बांग्लादेश शामिल है ने एक झटके में अंग्रेजी को निकाल बाहर कर दिया। बांग्लादेश ने ईसाई मिशनरी के संदर्भ में कहा कि इनकी अंग्रेजी से हमारी बंगाली भाषा को खतरा है।
- माओत्से तुंग ने सत्ता पर काबिज होते ही पूरे चीन में एक ही चीनी भाषा लागू कर दी, जबकि पहले वहां भी६-७ क्षेत्रीय भाषाएँ थी। एक चीनी भाषा होने के कारण भाषायी एकता होने से सभी चीनी स्वयं को एक सूत्र में जुड़े अनुभव करते हैं। आज से दस वर्ष पहले चीनी भाषा में अंक नहीं थे इसलिए वे लोग अंग्रेजी के अंकों को ही इस्तेमाल करते थे परन्तु उन्होंने चीनी में अंकों को विकसित किया जिनका इस्तेमाल चीनी भाषा के साथ अनिवार्य किया गया है जबकि हमारे देश में हिंदी के साथ देवनागरी अंकों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गयी है!!!
- संयुक्त अरब अमीरात ने अप्रैल २०१२ में‘अरबी भाषा नागरिक अधिकार-पत्र’ लागू किया है जिसमें सरकार ने ये संकल्प लिया है कि संयुक्त अरब अमीरात विश्व में अरबी भाषा का सबसे बड़ा गढ़ बनेगा और उनके देश में अरबी भाषा को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया जाएगा। सरकार हर स्तर पर पर अरबी भाषा को लागू करेगी और उसका विकास करेगी।
स्पष्ट है कि अंग्रेजी कोई सर्वसम्मत अंतर्राष्ट्रीय भाषा नहीं है, जैसा कि हम समझते हैं। यह भी सभी को ज्ञात है कि अंग्रेजी वैज्ञानिक भाषा भी नहीं है। ना ही अंग्रेजी तरक्की की भाषा है। विश्व के कई देशों ने बिना अंग्रेजी के अपना लोहा मनवाया है। विश्व के सभी छोटे-बड़े देशों में शासन की भाषा, शिक्षा-दीक्षा की भाषा, अभियांत्रिकी और चिकित्सा विज्ञान की भाषा उनकी अपनी भाषा है। ये देश भारत के महानगरों से भी छोटे हैं फिर भी उन्होंने अपने देशों में अपनी भाषा को लागू किया है। सूचना –प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके ये देश अपनी भाषाओं को मजबूत कर रहे हैं। भारत में उल्टा हो रहा है, सूचना प्रौद्योगिकी के नाम पर हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं को शासन-प्रशासन-शिक्षा आदि से बाहर किया जा रहा है। वाह रे अंग्रेजी की मानसिक गुलामी!
संयुक्त अरब अमीरात के ‘अरबी भाषा नागरिक अधिकार-पत्र’ को पढ़कर मुझे आपको यह पत्र लिखने की प्रेरणा मिली है। मैं विनम्र अनुरोध के साथ अपने सुझाव आपके सामने रख रहा हूँ। इन सुझावों के आधार पर मप्र शासन को मध्य प्रदेश राजभाषा नीति बनानी चाहिए और उसे लागू करना चाहिए। यदि ऐसी राजभाषा नीति लागू कर दी जाती है तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि मध्य प्रदेश राजभाषा नीति का कदम अन्य हिंदी भाषी राज्यों एवं केंद्र सरकार के लिए भी प्रेरणास्रोत का काम करेगा और हिंदी को विश्वभाषा बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा, साथ ही जब भी कभी हिंदी की स्वर्णिम गाथा लिखी जाएगी उसमें मप्र की वर्तमान सरकार और उसके मुखिया का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित किया जाएगा। मेरे सुझावों में से बहुत सी बातें पहले से ही शासन के कानूनों में शामिल होंगी पर फिलहाल वे ठीक तरह से लागू नहीं हो रही हैं इसलिए उनके पुख्ता क्रियान्वयन हेतु कदम उठाए जाने चाहिए।
मध्य प्रदेश राजभाषा नीति
अन्य बातों के साथ मध्य प्रदेश राजभाषा नीति में निम्न बिन्दुओं को शामिल किया जा सकता है:
प्रस्तावना :
मध्य प्रदेश राजभाषा नीति मध्यप्रदेश में हिंदी को सर्वश्रेष्ठ स्थान पर स्थापित करने और उसे विश्व भाषा बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण पहल है जो हमारे राज्य में हिंदी के प्रयोग के अनिवार्य दिशा-निर्देशों को रेखांकित करती है। हिंदी मध्यप्रदेश की आधारशिला है, मप्र की पहचान का सबसे बड़ा प्रतीक है और यही भारत की राष्ट्रीय पहचान का मूलभूत चिन्ह भी है। हिंदी हमारी समृद्ध संस्कृति, इतिहास एवं गौरवशाली परंपरा का आधारस्तंभ है। चूँकि मप्र शासन हिंदी को शिक्षा, संस्कृति और संचार की भाषा के रूप में विकसित करने के लिए कटिबद्ध है, दृढ संकल्पित है इसी के साथ मप्र शासन हिंदी को विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं चिकित्सा क्षेत्र की भाषा के रूप में विकसित करने के हर संभव कदम उठाने व इस कार्य में संलग्न व्यक्तियों और संस्थानों को प्रोत्साहित करने के अपने लक्ष्यों को दुहराता है। लोगों में अपनी भाषा के प्रति प्रेम और गर्व की स्थापना, उसकी स्थिति को मजबूत बनाना और उसका निरंतर विस्तार करना शासन की प्राथमिकता में शामिल है और चूँकि मप्र अपने नागरिकों को हिंदी में सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्रदान करने की दिशा में प्रयासरत है ताकि वे अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराओं और धरोहर पर गर्व कर सकें और अपने पूर्वजों की भाषा में नयी-नयी इबारतें गढ़ सकें तथा ‘अपना मध्यप्रदेश’ का स्वप्न साकार हो जहाँ हर भाषा और संस्कृति के लोग सद्भाव और प्रेम के साथ हिलमिलकर रहें।
सूचना-प्रौद्योगिकी एवं सरकारी कामकाज
१) मप्र शासन के सभी जालस्थल (वेबसाइटें)/मोबाइल अनुप्रयोग अनिवार्य रूप से पूर्ण रूप से हिंदी में तैयार किए जाएँगे, सभी वेबसाइटों के पते “देवनागरी लिपि” में पंजीकृत करवाए जाएँगे और सभी में हिंदी पूर्व निर्धारित भाषा होगी और जैसे ही कोई इन्टरनेट पर पता लिखेगा वेबसाइट हिन्दी में ही खुलेंगी, जहाँ आवश्यक होगा वहाँ अंग्रेजी वेबसाइट का विकल्प दिया जाएगा। जो भी निजी कम्पनियाँ सरकारी वेबसाइटें बनाने के लिए अनुबंधित की गयी हैं उन्हें मध्य प्रदेश राजभाषा नीति का ध्यान रखते हुए इंटरनेट पर हिंदी के प्रयोग के सभी विकल्प वेबसाइटों पर उपलब्ध करवाने होंगे।
२) सभी सरकारी वेबसाइटों पर ‘हिंदी सीखें’ के विकल्प का लिंक दिया जाएगा ताकि हिंदी ना जानने वाले हिंदी सीखने के लिए तकनीक का इस्तेमाल कर सकें ।
३) सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग अनिवार्य होगा, सरकार को जमा किए जाए वाले सभी करार-समझौते, फॉर्म, पत्र,दस्तावेज आदि हिंदी में ही जमा किए जाएँगे, ऐसे सभी दस्तावेज किसी अन्य में भाषा में होने पर उनके साथ उनका अधिकृत हिंदी अनुवाद जमा करना आवश्यक होगा। निजी कंपनियों और विदेशी सरकारों से होने वाले सभी द्विपक्षीय करार/समझौते अनिवार्य रूप से द्विभाषी (हिन्दी-अंग्रेजी) होंगे।
४) सभी सरकारी विभागों/संस्थानों/प्रतिष्ठानों/कंपनियों के पत्र-शीर्ष(लैटर-हैड), सभी अधिकारियों/कर्मचारियों के आगन्तुक-पत्र (विजिटिंग कार्ड) अथवा पहचान–पत्र, रबर की मोहरें, रसीदें, लिफ़ाफ़े, सभी प्रकार की लेखन सामग्री (स्टेशनरी), सरकारी कंपनियों की सार्व-मुद्रा (कॉमन सील), वार्षिक रिपोर्ट/ वार्षिक लेखे, विभागों –संस्थानों-कंपनियों के प्रतीक-चिन्ह आदि अनिवार्य रूप से हिंदी में बनाए जाएँगे। इनको द्विभाषी (हिंदी-अंग्रेजी) में बनाना है अथवा नहीं, इसका अधिकार विभाग प्रमुख के पास होगा। जिन सरकारी विभागों/संस्थानों/प्रतिष्ठानों/कंपनियों के प्रतीक-चिन्ह अभी अंग्रेजी में हैं, उनमें तुरंत सुधार किया जाएगा.
शिक्षा विभाग/ शिक्षण संस्थान
५) सभी निजी विद्यालय/विश्वविद्यालय/महाविद्यालय/ शिक्षण संस्थान आदि में सभी दिशा-निर्देश/ सूचना पटल, पदाधिकारियों के नाम/ पदनाम की पट्टियाँ, विद्यालय वाहन (स्कूल बस) पर संस्थान का नाम अनिवार्य रूप से द्विभाषी (हिंदी-अंग्रेजी) रूप में लिखा जाएगा। SCHOOL BUS शब्द के साथ-२ ‘विद्यालय वाहन’ लिखना अनिवार्य होगा।
६) हिंदी में उच्च-शिक्षा (विज्ञान/अभियांत्रिकी/ चिकित्साशास्त्र/कंप्यूटर विज्ञान/ प्रबंधन शिक्षा) के लिए सरकार ठोस कदम उठाएगी एवं निजी क्षेत्र को हिंदी में उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रेरित/प्रोत्साहित/पुरस्कृत किया जाएगा।
७) मप्र शासन सरकारी विद्यालयों में कक्षा ५ वीं तक सभी पाठ्यपुस्तकों में हिंदी अंकों (१२३४५६७८९०) के इस्तेमाल को पुनः प्रारंभ करेगा और हिंदी अंकों के इस्तेमाल पर पाबन्दी लगाने वाले पुराने आदेश को वापस लिया जाएगा । ५ वीं कक्षा तक के बच्चों को हिंदी अंक सिखाए और पढ़ाए जाएँगे।
८) शिक्षा विभाग पहली से पांचवी तक के पाठ्यक्रम में ‘भाषा-प्रेम और संस्कृति-प्रेम’ से संबंधित पाठों को शामिल करने की दिशा में कदम उठाएगा ताकि आगामी पीढ़ी में बचपन से ही अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति मजबूत लगाव पैदा हो और हमेशा बना रहे।
९) मप्र शासन निजी विद्यालयों /शालाओं के प्रबंधन मंडलों से अनुरोध करेगा कि बच्चों को कक्षा ५वीं तक हिंदी विषय के साथ-२ हिंदी अंक लिखना-पढ़ना सिखाएँ।
१०) मप्र शासन प्रयास करेगा कि राज्य में प्राथमिक शिक्षा हिंदी में दी जाए, अभिभावकों को अपने बच्चों को कक्षा ५वीं तक हिंदी माध्यम में पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा एवं निजी शिक्षण संस्थानों को भी हिंदी माध्यम से कक्षा ५वीं तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था करने और प्रोत्साहित करने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
उद्योग, कारोबार एवं निजी व्यावसायिक प्रतिष्ठान
११) सभी निजी व्यावसायिक कार्यालयों/होटलों/ रेस्तराँ/ भोजनालय/निजी दुकानों/कंपनियों /बैंकों, वकील / सीएस / सीए / वास्तुविद / चिकित्सक आदि के दफ्तरों में नाम/पते के नामपट एवं पत्रशीर्ष आदि में हिंदी का प्रयोग अनिवार्य होगा, अंग्रेजी के इस्तेमाल की छूट रहेगी लेकिन हिंदी को प्राथमिकता के आधार पर प्रयोग किया जाएगा, हिंदी के अक्षर अंग्रेजी के अक्षरों से छोटे नहीं होंगे और हिंदी के अक्षर हमेशा अंग्रेजी अक्षरों से ऊपर अथवा पहले प्रदर्शित किये जाएँगे। इस प्रावधान के सख्ती से पालन के लिए सभी नगर-निगमों / नगरपालिकाओं / नगर-पंचायतों / ग्राम –पंचायतों को निर्देशित किया जाएगा।
१२) केंद्र सरकार के कानूनों को ध्यान में रखते हुए मप्र में स्थित तथा मप्र शासन से पंजीकृत/लाइसेंस प्राप्त सभी निजी निर्माण इकाइयों/कारखानों को अपने सभी उत्पादों पर उत्पाद का नाम, उत्पादन तिथि-अवसान तिथि, मूल्य, वजन, निर्माता/विनिर्माता का नाम-पता एवं ग्राहकों के लिए आवश्यक जानकारियां अनिवार्य रूप से हिंदी में छापने का क़ानूनी प्रावधान किया जाएगा।
१३) सभी होटलों/ रेस्तराँ/ भोजनालय आदि, जहाँ अभी भोज सूची (मेनू) केवल अंग्रेज में तैयार की जाती है, को अपनी भोज सूची (मेनू कार्ड) द्विभाषी रूप में तैयार करना अनिवार्य होगा।
परिवहन विभाग
१४) मप्र में सभी वाहन पंजीयन एवं चालक अनुज्ञप्ति (स्मार्ट कार्ड) अनिवार्य रूप से द्विभाषी (हिंदी-अंग्रेजी) में बनाये जाएँगे। जिसमें व्यक्ति का नाम, पता, जन्मतिथि आदि विवरण देवनागरी लिपि में अंकित किया जाएगा। स्मार्ट कार्ड से पहले ये दोनों [वाहन पंजीयन/एवं चालक अनुज्ञप्ति] केवल हिंदी में बनाए जाते थे इसलिए हिंदी प्रदेश में हिंदी को उसका शीर्ष स्थान फिर से मिलना चाहिए।
१५) सभी सरकारी वाहनों पर वाहनों के पंजीयन क्रमांक अंग्रेजी के साथ-२ हिंदी (देवनागरी लिपि एवं देवनागरी अंकों में) में लिखना अनिवार्य होगा, वर्तमान में केरल/कर्नाटक/महाराष्ट्र आदि में अंग्रेजी के साथ-२ उनकी अपनी राजभाषा में वाहन क्रमांक लिखने का अनिवार्य प्रावधान है और इन राज्यों में इस प्रावधानों का पालन ठीक तरह से किया जा रहा है।
१६) मप्र में पंजीकृत सभी निजी व्यावसायिक एवं व्यक्तिगत वाहनों पर कम-से कम एक स्थान पर वाहनों के पंजीयन क्रमांक अंग्रेजी के साथ-२ हिंदी (देवनागरी लिपि एवं देवनागरी अंकों में) लिखना अनिवार्य होगा। सभी निजी व्यावसायिक वाहनों पर ALL INDIA PERMIT, TOURIST VEHICLE, NATIONAL PERMIT, TAXI, AUTO के साथ-२ हिंदी में “अखिल भारतीय परमिट (अनुज्ञा), पर्यटक वाहन, राष्ट्रीय अनुज्ञा, टैक्सी, ऑटो” आदि लिखना अनिवार्य होगा। इसके लिए आवश्यक क़ानूनी प्रावधान किया जाए।
भाषा और संस्कृति
१७) मप्र शासन देश के सभी हिंदी भाषी राज्यों की राज्य सरकारों के साथ मिलकर प्रति वर्ष “वार्षिक हिंदी सम्मलेन” आयोजित करवाएगी जिसका उद्देश्य होगा- सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से हिंदी भाषी राज्यों में निजी कामकाज में हिंदी को बढ़ावा देना एवं १०० % सरकारी कामकाज में हिंदी को लागू करवाना। इसके साथ ही पहले से मौजूद हिंदी संस्थाओं को मजबूत किया जाएगा।
१८) मप्र से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्रों/पत्रिकाओं एवं समाचार वेबसाइटों / समाचार चैनलों को हिंदी के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ किये बिना अंग्रेजी भाषा के शब्दों को अपरिहार्य होने पर ही इस्तेमाल करना चाहिए, जहाँ लोकप्रिय और प्रचलित हिंदी शब्द पहले से उपलब्ध हैं अथवा अन्य भारतीय भाषा के शब्द को लिया जा सकता है, उनके स्थान पर अंग्रेजी शब्दों के इस्तेमाल से बचना चाहिए ताकि भाषाई घुसपैठ को रोका जा सके।
आशा करता हूँ कि आप मेरे सुझावों पर विचार करेंगे और आगामी समय में मप्र के नागरिकों को ‘मप्र राजभाषा नीति’ मिलेगी जिससे सुप्त हो चुके भाषाप्रेमियों में नई ऊर्जा और प्रेरणा का संचार होगा।
आपके सकारात्मक उत्तर की प्रतीक्षा है।
भवदीय,
प्रवीण जैन
बहुत अच्छा पत्र ! यह पात्र सभी राज्यों के मुख्य मंत्रियों और केन्द्रीय शिक्षा मंत्री को भी भेजा जाना चाहिए.
‘निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति कौ मूल’ यह अटल सत्य है !