मुक्तक/दोहा

साहित्यकार और समाज

साहित्यकार समाज का करता है अन्वेषण
समाजिक अनुभवों का करता है विश्लेषण
समाज से पायी बातों को लेखनी में समेटकर
रचनात्मक रुप देकर करता समाज को अर्पण
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
साहित्यकार संस्कृति की बातें बताता है
समाजिक बातों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाता है
सामाजिक कुरितियों पर कठोर आघात करके
समाज में परिवर्तन की नयी क्रांति लाता है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
एक सच्चे साहित्यकार को डरने की न आदत
लेखनी उसकी पूंजी है सच्चाई उसकी ताकत
वह जज नहीं है जो सबूत देखता है
उसका तो है अपना दिल ही अदालत
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

3 thoughts on “साहित्यकार और समाज

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह वाह , बहुत खूब .

  • दीपिका कुमारी दीप्ति

    धन्यवाद सर !

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

Comments are closed.