सिद्ध अपराधी (Convicted) को बेल, विचाराधीन (Under trial) को जेल
वाह री न्यायपालिका! एक सुपर स्टार वी.आई.पी. के लिए सारे नियम कानून ताक पर। परसों दिनांक ६-५-१५ को मुंबई की सेशन कोर्ट विभिन्न धाराओं में सलमान खान को दिन के १.३० बजे ५ साल की सज़ा सुनाती है और आधे घंटे के अंदर दिन के दो बजे मुंबई हाई कोर्ट उसे ज़मानत दे देती है। नशे में धुत होकर फुटपाथ पर सोए गरीब बेकरी-मज़दूरों पर गाड़ी चढ़ाकर एक को मौत की नींद सुलाने और चार को अपाहिज़ बनाने वाले अपराधी को एक मिनट के लिए भी जेल नहीं जाना पड़ा। आज उस अपराधी के पक्की बेल के लिए मुंबई हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। जैसी उम्मीद थी, सलमान को पक्की ज़मानत मिल गई। उनकी सज़ा पर स्टे भी मिल गया है। उन्हें हाई कोर्ट का अन्तिम फ़ैसला आने तक गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता।
मुंबई के पुलिस कमिश्नर सतपाल सिंह ने फ़ैसले पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि अदालत के इस फ़ैसले से अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा। कमिश्नर साहब को आश्चर्य हुआ है, मुझे बिल्कुल नहीं हुआ। उच्च न्यायालय वी.आई.पी. सुपर स्टार के मामले में आवश्यकता से अधिक फ़ास्ट और एक्टिव था। जब आधे घंटे में अन्तरिम ज़मानत मिल सकती थी तो पक्की ज़मानत पर आश्चर्य कैसा। कोई सांसद किसी महिला की तारीफ़ कर दे, तो लोग बाग टूट पड़ते हैं। उसे संसद में माफ़ी मांगनी पड़ती है। किसी की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाली बात करने पर जेल जाने की नौबत आ जाती है। आज ही राहुल गांधी कोर्ट में पेश हुए हैं। कोई सरकारी कर्मचारी व्यवस्था के खिलाफ़ बोल ही नहीं सकता है। अगर १० रुपए की रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाता है, तो नौकरी चली जाती है। लेकिन एक की हत्या करने और चार को अपाहिज़ बनाने वाले को उच्च न्यायालय एक मिनट के लिए भी जेल भेजने में हिचकिचाता है। अदालत के खिलाफ़ बोलने या लिखने पर अवमानना का मुकदमा चल सकता है और जेल भी हो सकती है, लेकिन यह सब जानते हुए भी मैं चुप रहना, अन्याय करने के समान मानता हूं। मुझे यह कहने या लिखने में तनिक भी हिचक नहीं है कि आज और दिनांक ६ मई का मुंबई हाई कोर्ट का फ़ैसला प्रायोजित था।
मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने कहा है कि देश में एक लाख से ज्यादा व्यक्ति विचाराधीन (Under trial) हैं और वर्षों से जेल में बंद हैं। अगर न्यायालय ने सलमान के केस की १०% तेजी भी उन दुर्भाग्यशाली गरीब विचाराधीन कैदियों के प्रति दिखाई होती, तो लाखों परिवारों का जीवन बर्बाद होने से बच सकता था। उनके द्वारा तथाकथित किए गए अपराध उतने बड़े नहीं होंगे, जितना बड़ा अपराध उनका गरीब और निरीह होना है। समझ में नहीं आता है कि यह कैसा देश है, इसका कैसा कानून है और इसकी कैसी अदालतें हैं जो एक ही ज़ुर्म और एक ही कानून की व्याख्या अपनी धारणा, स्वविवेक और अपनी सुविधा के अनुसार करती हैं। इसके मापदंड वी.आई.पी के लिए अलग है, आम जनता के लिए अलग। एक ही जुर्म में लालू, जयललिता, ए.राजा आदि आदि को हाई कोर्ट सज़ा सुना देती है, वे जेल भी चले जाते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट उन्हें अनिश्चित काल के लिए ज़मानत दे देती है। अगर आपकी औकात हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जाने की नहीं है तो ……………। जरा सोचिए आपका क्या हश्र होगा? सारा खेल पैसे का है रे बाबा !
जय न्यायपालिका! जय न्यायाधीश!!
जोरदार लेख है, पढ़कर भारतीय कानून और न्याय व्यवस्था पर किये गये कटाक्ष का आभास होता है, मैं पूरी तरह से सहमत हूँ!
लेख बहुत करारा तमाचा है भारत के निआये के मुंह पर . मेरी अन्पड बीवी गालिया दे रही है भार्तीय कानून को . कैसा इन्साफ है यह , जो गरीब को मरे तेराह वर्ष हो गए उस के बारे में कोई भी फैन बोला नहीं . जो लोग इंजर्ड हुए उन को भी कोई इस का फैन जानता नहीं . एक साफ़ जुर्म है कि एक शख्स ने नशे में धुत्त हो कर गरीबों को कुचल दिया , वोह फुट पाठ पर थे नाकि सड़क के बीच में . अगर सड़क के बीच सोते हुए होते तो बात इलग्ग थी लेकिन फुटपाथ पर तो कोई आम शहरी भी चला जा रहा होगा . फुट पाथ गाडी चलाने के लिए नहीं है . फिर मज़े की बात यह है कि यह hit and run है . वाह रे भारत का नियाए.
आपका यह करारा लेख भारतीय (अ)न्यायपालिका के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है. मैं आपसे अक्षरशः सहमत हूँ. मैं इसे ज्यों का त्यों अपने फेसबुक पन्ने पर लगा रहा हूँ. साहस दिखाने के लिए आभार !
So many thanks.