विपक्ष के एक साल की समीक्षा
मोदी सरकार को अब एक साल पूरे हो रहे हैं। मीडिया में मोदी सरकार के कामकाज की समीक्षा पूरे जोर शोर से शुरू हो चुकी है। लोकसभा चुनावों में ऐतिहासिक सफलता के बाद तीन प्रांतों के विधानसभा चुनाव हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में भाजपा को मिली ऐतिहासिक सफलता और जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनने की सफलता से जहां एक ओर भाजपा में आत्मविश्वास तेजी से बढ़ता जा रहा था वहीं दिल्ली के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के हाथों भाजपा के ही साथ कांग्रेस को भी पराजय का मुंह देखना पड़ गया। दिल्ली के विधानसभा चुनावों में तो भाजपा को तीन सीटें मिल भी गयीं लेकिन कांग्रेस तो वहां खाता भी नहीं खोल सकी। इससे कांग्रेस के नेतृत्व की नींद हराम हो गयी थी। अतःप्रधानमंत्री मोदी व भाजपा के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए विपक्ष एक बार फिर नये सिरे से रणनीति बनाने में जुट गया।
प्रधानमंत्री मोदी की बढ़त व उनकी लोकप्रियता को रोकने के लिए सबसे अधिक दबाव कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर भी था।कहा जा रहा है कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में मिली करारी पराजय से परेशान होकर कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी अवकाश लेकर 59 दिनों के लिए चिंतन के लिए चले गये। राहुल गांधी का रवैया कांग्रेसियों के लिए परेशानी का सब बनता जा रहा था। राहुल गांधी का अवकाश सोशल मीडिया पर जमकर छाया रहा। राहुल गांधी का अवकाश मजाक का पात्र बन गया। उधर जनता परिवार में भी लगातार बैचेनी बढ़ती गयी और उन्होनें एकजुट होने का फैसला किया लेकिन वह भी अभी तक कुछ असरकारी होता दिखलायी नहीं पड़ रहा है।
खैर राहुल गांधी लम्बे अवकाश के बाद संसद के बजट अधिवेशन के दूसरे हिस्से में भाग लेने के लिए वापस आ गये हैं। राहुल गांधी तरोताजा होकर अपनी खोयी हुई जमीन को वापस पाने के लिए आक्रामक राजनीति करने का असफल प्रयास कर रहे हैं। राहुल गांधी ने वापसी के बाद जो राजनीति शुरू वह केवल टीआरपी बढ़ाने की राजनीति हो रही है। कुछ टी वी चैनलों मे बहसों के साथ सर्वे किया जा रहा है कि क्या राहुल गांधी नये कलेवर और तेवरों के साथ प्रधानमंत्री मोदी व उनकी टीम का मुकाबला कर पायेंगे तब उसमें लगभग अभी भी 75 प्रतिशत से अधिक लोगों का मत निकला है नहीं। राहुल व उनकी मां श्रीमती सोनिया गांधी नये सिरे से प्रतिदिन संसद में शून्यकाल के दौरान कोई न कोई मुददा उठाकर अपनी योग्यता का परिचय दे रहे हैं।राहुल गांधी पहले तो बोलते नहीं थे अब उन्होंने शून्यकाल में कोई न कोई मुददा उठाकर सरकार को घेरने का काम शुरू तो अवश्य किया है लेकिन वह अपना जनता के बीच कोई गहरा प्रभाव अभी तक दिखा पाने में सफल नहीं हो पा रहे है। उनकी छवि में लोकप्रियता की जगह गिरावट आ रही है। उनमें परिपक्वता व गहराई में कमी साफ दिखलाई पड़ रही है।
प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा के प्रति चुनावों के पूर्व जो स्टैंड था वह अब भी कायम है। राहुल गांधी किसानों का मुददा उठा चुके हैं। उसके बाद नेट न्यूट्रिलिटी का मुददा उठाया। फिर उदार हिंदुत्व की छवि को दिखाने के लिए आपदा का लम्बा समय बीत जाने के बाद केदारनाथ यात्रा की याद आ गयी। फिर एक दिन उनकी मां सोनिया गांधी संसद व देश को गुमराह करने के लिए सूचना के अधिकार को कमजोर करने का मुददा उठा लेती है। जबकि सूचना के अधिकार को कमजोर करने का सबसे अधिक काम यूपीए की सरकार में हुआ था। फिर राहुल गांधी संसद में अमेठी के फूड पार्क प्रोजेक्ट को रोकने का मुददा उठाकर सरकार पर बदले की राजनीति करने का घिनौना आरोप लगाने का प्रयास करते है। वे आरोप लगाते हैं कि अमेठी में मोदी सरकार ने फूड पार्क प्रोजेक्ट को रोक दिया है लेकिन जब फूड पार्क की सच्चाई उजागर हुई तब साफ गया कि राहुल गांधी का नया चिंतन किस ओर उन्हें लेकर जा रहा है। आजकल राहुल गांधी को हर बात पर उद्योगपति ही नजर आ रहे हैं। जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार चल रही थी तब राहुल गांधी व उनकी माँ श्रीमती सोनिया गांधी क्यों चुपचाप बैठे थे। साफ है कि तब यह मां- बेटे सरकार का सत्तासुख भोग रहे थे। इन नेताओं को लग रहा था भारत की जनता हमेशा हमकों ही वोट देगी। इन लोगों को अपनी पराजय स्वीकार नहीं हो पा रही है। सरकार के कामकाज का विरोध करने के नाम पर केवल और विरोध किया जा रहा है।
एक समय कांग्रेस ने जीएसटी बिल का समर्थन किया था लेकिन अब केवल मोदी सरकार को परेशान करने व विकास की राह में रोड़ा अटकाने के लिए राज्यसभा में भाजपा का बहुमत न होने का लाभ लेना चाह रही है। यही कारण भमि अधिग्रहण बिल व रियल स्टेट बिल का रहा। कांग्रेस हर विधेयक को स्थायी समिति के हवाले करने का अलोकतांत्रिक नाटक रच रही है। विपक्ष जिस प्रकार से सरकार के प्रति नकारात्मक रवैया अपना रहा है जनता उसे भी देख व समझ रही है। राहुल गांधी ने अभी तक जितने भी भाषण दिये हैं वह केवल उनकी खोखली व अधूरी ज्ञान की आक्रामकता का ही परिचायक साबित हो रहे हैं। अब तक कांग्रेस व अन्य सरकारां के कार्यकाल में देश की सेना का इतना बुरा हाल हो गया है कि अब उनके पास केवल युद्ध हो जाने की स्थिति में बीस दिनों का गोला बारूद बचा है। जब देश को मनोहर पर्रिकर के रूप में एक अत्यंत देशभक्त, ऊर्जावान व ईमानदार रक्षामंत्री मिला है तब राहुल गांधी रक्षा मंत्रालय के फैसलों पर भी सवालिया निशान उठा रहे हैं। राहुल ने विगत दिनों राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद को भी गैर जरूरी बताने की कोशिश की। राहुल गांधी व कांग्रेस के रवैये से साफ पता चल रहा है कि कुछ लोग देश की जनता को गरीब व देश की सेना के मनोबल को कमजोर ही देखना चाहती है।
अब राहुल गांधी मोदी से मुकाबला करने के लिए टिवटर पर भी आ गये हैं। लेकिन अभी उनके फालोअर की संख्या काफी कम है। अब वे भी टिवटर पर ही अपने कामों की जानकारी दे रहे है। गांधी परिवार ने सदा सस्ती लोकप्रियता की राजनीति की है। इस परिवार का इतिहास गवाह है कि यह लोग उन्हीं क्षेत्रों से चुनाव लड़ना पसंद करते हैं जहां गरीबी का आलम हो अशिक्षा हो या फिर जहां पर जनता को आसानी से गुमराह किया जा सकता हो। लेकिन अब देश की राजनीति करवट बदल रही है। जनता सब देख रही है। राहुल गांधी चाहे रेल से पंजाब देखने जायें और मीडिया के सामने फर्जी आक्रामकता दिखायें या फिर तेलंगना जाकर 15 किमी की पदयात्रा करें। फिलहाल अगले चार साल तो कुछ नहीं होने जा रहा है। राहुल गांधी व विपक्ष केवल राज्यसभा में अपने बहुमत के दम पर सरकारी काम को प्रभावित कर सकता है लेकिन संविधान में कई रास्ते हैं।
एक बात और अभी श्रीमती सोनिया गांधी ने अल्पसंख्यकों के मन में व्याप्त भय उन पर हो रहे हमलों का मुददा भी उठाया है । गांधी परिवार ने क्या कभी पाकिस्तान व बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न का मुददा उठाया। आज गांधी परिवार किसानों के लिए व उनकी आत्महत्या पर आंसू बहा रहे हैं लेकिन जब केंद्र में उनकी सरकार थी तब मां – बेटे कहां थे। जो लोग 65 साल तक कुछ नहीं कर पाये अब एक साल की सरकार पर आरोप लगाने चले हैं। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी का यह बयान बिलकुल सही है कि अब इस देश की राजनीति में गांधी परिवार का कोई सुखद भविष्य नहीं है। यह लोग केवल विकास के काम में बाधक बन रहे हैं।
— मृत्युंजय दीक्षित
अच्छा लेख. एक साल पुरानी मोदी सरकार जहाँ ठोस आर्थिक विकास के लिए आधारशिला तैयार कर रही है, वहीँ विपक्ष के पास कोई मुद्दा ही नहीं है और निरर्थक बातों पर विरोध की रस्म अदायगी की जा रही है.