कविता
पत्नि के पीहर जाने पर
पति खुश क्यूं होते है
सोचा मैंने
ऐसा क्या है जो
ये पत्नियों संग रोते है
समय पर खाना
समय पर सफाई
हरवक्त की नोकर
इक खर्चे में आई
जब चाहै तब ताने मारे
जब चाहै तब बात बिगाङी
फिर भी घर का सारा काम
ये करती रहे बेचारी
बच्चों को संभाला
सास ससुर का ख्याल रखा
इस पर भी कभी न उसने
अपना कोई सवाल रखा
सुबह सबसे पहले उठकर
सबकी जरुरते देखी
कभी कुछ समय बचा तो
सहेलियों संग पति की बघारी शैखी
इस्तरी के कपङो मे
कभी सलवट न पङने दी
जिंदगी अपनी भले
गुत्थियों में सङने दी
हर किसी की जरुरत का
हरपल ख्याल रखा
अपनी जरुरतो का
हिसाब बेहाल रखा
फिर पीहर जाने पर
पति की कैसी आजादी
यहां क्यू पत्नि की
बंदगी ठहरा दी
पता नही क्यूं आजाद होना चाहते हो
जब कि इसमें से एक भी काम
कभी खुद से नही कर पाते हो
बढ़िया ! इसमें सत्य का बड़ा अंश है !
हा हा , मजेदार . पत्नी काम तो सभी करती है लेकिन जो पती उस के माएके जाने पर खुश होते हैं वोह उन की तकरार से छुटकारा पाना चाहते हैं लेकिन यह भी ज़िआदा देर नहीं रहता . कुछ दिन ज़िआदा माएके में लग जाएँ तो उसे लेने पीछे चले जायेंगे . इस का नाम ही जिंदगी है .
सही कहा भाई साहब. जब कभी पत्नी मायके जाती हैं या मैं अकेला आगरा चला जाता हूँ तो मेरा भी मन नहीं लगता. वैसे रोज तकरार होती है जरा जरा सी बात पर !