स्वर्ग
घुसते ही घर में कानों में,
सरगम स्वर में सुरताल बही।
खिडकी के एक झरोखे से,
झन-झन पायल झनकार रही।
कमरे में झांका तो देखा,
थी राजकुमारी नाच रही।
बैठक के एक किनारे से,
सप्तम कानों में टकराया।
झांझर,तबला,मटका,गिटार,
का मिला-जुला सा स्वर आया।
देखा तो कुंवर-कन्हैया जी,
अपनी ही धुन में खेल रहे ।
चिमटा,थाली,चम्मच,गिलास,
पर वे रियाज़ थे पेल रहे ।
लो अहा! किचन से ये कैसी,
खुश्बू सी तिरती आई है!
साथ-साथ उनके स्वर की,
मृदु वीणा सी लहराई है।
कोई पूछे मुझसे आकर,
इस धरती पर स्वर्ग कहीं है?
यह सुनकर लगता है एसा,
स्वर्ग यहीं है, स्वर्ग यहीं है॥
वाह वाह .
धन्यवाद गुरुमेल जी आभार
हा…हा…हा…. क्या शानदार वर्णन किया है…. मजा आ गया ….
धन्यवाद विजय जी —