जीवन की पूंजी : चरित्र
मानव जीवन की चरित्र सबसे बड़ी पूंजी है
जीवन को सार्थक करने की यही मात्र एक कुंजी है
चरित्रवान मानव को पूजता है सारा संसार
चरित्रहीन को अपनी ही आत्मा देती दुत्कार
अच्छे चरित्र के कारण ही श्रीराम बने भगवान
बली-विद्वान होकर भी रावण बन गया शैतान
चरित्र बनाने के लिए कम पड़ जाता एक जीवन
चरित्र खोने के लिए काफी होता एक क्षण
पैसा खो जाने पर कमाने से मिल जाता
स्वास्थ्य खो जाने पर उपचारों से लौट आता
एक बार खो गया चरित्र तो मिलना नहीं मुमकिन
चाहे उसे पाने के लिए एक कर दें रात-दिन
बुरा बनना आसान है हम अच्छा बनना सीखें
साधारण तो सभी हैं हम महान बनकर देखें
— दीपिका कुमारी दीप्ति
आपने इस कविता में बहुत गहरी बात कह दी है. चरित्र गया तो सब कुछ गया !
दीपिका जी , चरित्र पर कविता अच्छी लगी . बचपन में पड़ा करते थे , wealth is lost ,nothing is lost health is lost , something is lost character is lost everything is lost .