गीतिका/ग़ज़ल

कलम कोई थमा दे आज

मेरे इन नन्हें हाथों में कलम कोई थमा दे आज
मुझे भी शिक्षा का पावन मार्ग कोई बतलादे आज

जो हैं सौदागर इस जग के जिनकी सब जयकार करें
हाथ रखे सर पर हमारे कुछ तो स्नेह दिखादे आज

जो ढाबे पर टिप देकर हमको अपनी शान समझते हैं
उंगली थाम हमारी वो राह स्कूल की दिखादे आज

मां -बापू का कर्जा क्यों हम पर ही भारी पड़ता हैं ?
कोई लौटा दे फिर बचपन मासूम हैं समझादे आज

समाज का कूड़ा -करकट क्यों हमको ही समर्पित हैं
लकीरें हमारे भाल की भी कोई तो चमकादे आज

ईटों के बोझ तले झुके सर को गर्व से उठाना चाहता हूँ
कोई मेरे सर से आकर बोझ ये हटा दे आज

मेरी लाचारी को मेरा नसीब न समझो दुनिया वालों
मैं भी हूँ देश का भविष्य कोई मुझको हक दिलवादे आज
मेरे इन नन्हें हाथों में कलम कोई थमा दे आज

मधुर परिहार 

2 thoughts on “कलम कोई थमा दे आज

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    मां -बापू का कर्जा क्यों हम पर ही भारी पड़ता हैं ?
    कोई लौटा दे फिर बचपन मासूम हैं समझादे आज

    अतीव सुंदर उपरोक्त पंक्तियाँ

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

Comments are closed.