सूरत
नींद अभी आँखों से मीलों दूर नज़र आती है
आँखे बंद हों या खुली क्या फर्क पड़ता है
हमे तो दोनों ही तरफ आपकी तस्वीर नज़र आती है
बहुत कोशिश कर चुका
की नींद अपने आगोश में लेले मुझको
पर रह रह कर आपको आगोश में लेने की
तमन्ना जागृत हो जाती है
आज फिर क्र उठा मेरा मन
की लेलूं पनाहों में आपको
और न छोड़ूँ ..
की कहीं दूर न चली जाओ
पर क्या करूँ
चाहकर भी मार लेता हूँ अपने मन को
क्योंकि
मुझे अब फिर से
व्ही पहले वाली
आपकी उतरी हुई सूरत नज़र आती है
यह भी जानता हूँ
की तमन्ना तो तुम्हारी भी रही है
हमे अपने आँचल में छिपाने की
की कहीं नज़र न लग जाए
हमे संग देख कर..जमाने की
फिर कौन सी मजबूरी उन्के
कदम रोक जाती है
हमे उनकी व्ही पहले वाली
उतरी हुई सूरत नज़र आती है
बहुत खूब !