कवितापद्य साहित्य

विचार-विस्तार…!!

तुम्हारे जो विचार है,
अरूपित-निराकार है,
इनको गढ़ लेने दो,
विहारों में चढ़ लेने दो..
कुत्सित कुवाक्य है जो अटल,
नकार रहा है जिनको पटल,
उन्हें मिट लेने दो,
लेखनी से पिट लेने दो..
रिवाजी चलन बिखरता है,
आजकल खुरों में निखरता है,
शब्द बाण हर लेने दो,
निराहार कर लेने दो..
तुम्हारे जो विचार है,
अरूपित-निराकार है,
इनको गढ़ लेने दो,
विहारों में चढ़ लेने दो..
पुलत्स्य का जो वंश था,
वेद-पुराणों से प्रंश था,
रावण की दुर्भावुकता से झुलस गया,
अहम् के वश बवंडर में फँस गया,
वैदिकता को पुन: फिर लेने दो,
संस्कृति के वश में घिर लेने दो…
नारियों को बढ़ लेने दो,
विहारों में चढ़ लेने दो..
तुम्हारे जो विचार है,
अरूपित-निराकार है,
इनको गढ़ लेने दो,
विहारों में चढ़ लेने दो..

विचार-विस्तार

सूर्यनारायण प्रजापति

जन्म- २ अगस्त, १९९३ पता- तिलक नगर, नावां शहर, जिला- नागौर(राजस्थान) शिक्षा- बी.ए., बीएसटीसी. स्वर्गीय पिता की लेखन कला से प्रेरित होकर स्वयं की भी लेखन में रुचि जागृत हुई. कविताएं, लघुकथाएं व संकलन में रुचि बाल्यकाल से ही है. पुस्तक भी विचारणीय है,परंतु उचित मार्गदर्शन का अभाव है..! रामधारी सिंह 'दिनकर' की 'रश्मिरथी' नामक अमूल्य कृति से अति प्रभावित है..!

2 thoughts on “विचार-विस्तार…!!

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

    • सूर्यनारायण प्रजापति

      धन्यवाद….!!!!

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