इंतज़ार
मेरा न लिखना उन्हें क्यों सताने लगा है
कुछ न कुछ तो है यह क्यों बताने लगा है
क्यों नही समझ पाय वो
की वो तो दिल की गहराइ में रहते हैं
कलम चले न चले
वो तो आँखों की स्याही में बहते हैं
शब्द तो दो घडी दिल को बहलाते हैं
लेकिन वो तो हर पल इन साँसों में रहने लगे हैं
ठीक है की कुछ है
जो रह रह कर मुझको सताता है
चाहता हु न सोचु
पर रह रह क्र फिर ख्याल आता है
पर वो यह न समझें की उनकी ख़ता है कोई
क्योंकि खता तो इस दिल की है
जो हमेशा अपने ही भावो में बहा जाता है
वो पास हों या दूर
यह उन्हें अपने पास ही पाता है
एक पल नही गुजरता उन्हें याद किये बिना
न दिखें आस पास तो अनायास ही रोना आता है
उनको पाने की चाहत इतनी बढ़ चुकी
की एक एक दिन
मिलने के इंतज़ार में गुज़रा जाता है
बहुत खूब !