पहनावा…
पहनावा पहचान है,
मानव की इकलौती शान है,
पहने ऐसा जो हो मन भावन,
ऐसा ना जो तुम्हें विचारों से भी नग्न कर दें…
आधुनिकता के भूकंप में,
जूपती तुम्हारी लौ जलती जा रही है,
संस्कृति का सिसकना जारी है,
रुदन बंद पड़ गया है,
पतन सम्मुख ले कटोरा खड़ा है,
अस्वीकृति कर प्रदान,
इसे भग्न कर दे…
ऐसा ना जो तुम्हें विचारों से भी नग्न कर दें…!!!
वाह वाह ! बहुत सुंदर !!
धन्यवाद बड़े भाईसाहब
बहुत खूब .
धन्यवाद सा