कविता

एक अजनबी देश में

एक अजनबी देश में था मैं
तो सोचा
क्या जगह है ये
लोग अलग हैं
भाषा अलग है
बोली अलग है
रंग रूप अलग है
भगवान तक अलग हैं
लेकिन सारी दुनिया तो एक थी
फिर क्यों सब ने हिस्से कर दिये
अपनी अपनी अलग जगह बना ली
और अपने रास्ते अलग कर लिये
सालों बाद सब ने
उन जगहों को देश का नाम दे डाला
ज़मी वही रही
लेकिन दुनिया के हिस्से हो गये
अब एक जगह से दूसरी जगह जाने पर
पाबंदिया लग गई
वीसे लग गये
मैं हिंदोस्तानी से
जापानी बन गया
क्योंकि यहाँ जन्मा था
लेकिन जापानीयो की नज़र में
मैं हिंदोस्तानी और
हिंदोस्तानियों की नज़र में
मैं जापानी बन गया

अक्षित शर्मा

2 thoughts on “एक अजनबी देश में

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता अच्छी , ना इधर के ना उधर के रहे जब कि हमारी भावनाओं की डोर भारत और बिदेस को बांधे हुए है .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब ! प्रवासी भारतीयों की भावनाओं का अच्छा प्रकटीकरण है !

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