भाजपा के लिए आसान नहीं मिशन- 2017
केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग गठबंधन की सरकार अपने एक साल का जश्न उप्र के मथुरा जिले में प्रधानमंत्री मोदी की महारैली का आयोजन करके मनाने जा रही है। पीएम मोदी की रैली का आयोजन मथुरा में अकारण ही नहीं किया जा रहा है। मथुरा में महारैली का आयोजन करके केंद्रीय नेतृत्व एक तीर से कई निशाने साधने की अभूतपूर्व तैयारी कर रहा है। इस रैली के माध्यम से जहां स्थानीय सांसदों की भूमिका व उनके जनता के बीच मौजूदा आंकलन का प्रभाव पता चल सकेगा वहीं दूसरी ओर मिशन – 2017 की आधारशिला भी रखी जा सकेगी।
लोकसभा चुनावों के बाद उप्र में भाजपा को आश्चर्यजनक व ऐतिहासिक सफलता मिली थी जिससे प्रदेश के भाजप नेताओं व कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा हो गया था। लेकिन कुछ समय बाद ही प्रदेश में विभिन्न कारणों के चलते पांच बार उपचुनाव हो चुके हैं जिनमें सभी उपुचनाव में भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ रहा है। यह भाजपा नेतृत्व के लिए बेहद परेशानी का सबब बनता जा रहा है। उप्र में अब परिस्थितियां लगातार तेजी से बदल रही हैं। समाजवादी पार्टी,बसपा व कांग्रेस सहित अब तो आम आदमी पार्टी भी अपने आप को एक नये सिरे से भाजपा को घेरने की तैयारी कर रही हैं। जिसमें सबसे आगे अभी तो केवल समाजवादी पार्टी ही चल रही है। बसपा अपने पुराने जातिगत आधार को फिर से जीवित करने का जीतोड़ प्रयास कर रही है हालांकि बसपा में इस समय संगठनात्मक दबाव है तथा पार्टी में बगावत के सुर बुलंद हो रहे हैं।
कांग्रेस में राहुल गांधी की वापसी का असर भी बहुत अधिक दिखलाई नहीं पड़ रहा है। कांग्रेस पार्टी भूमि अधिग्रहण बिल और किसानों के मुददे उठाकर भाजपा को बैकफुट पर लाने का प्रयास र रही है। लेकिन प्रदेश के भाजपा नेता भी सतर्क हैं और प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी पूरी ताकत के साथ विरोधी दलों के नेताओं के झूठ के पुलिंदे से निपटने का प्रयास भी कर रहे हैं। हालांकि भाजपा को सबसे अधिक बसपा व सपा के जातिगत समीकरणों से निपटने की रणनीति बनानी पड़ेगी। दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद इस बात के कयास लगाये जा रहे हैं कि प्रदेश का मुस्लिम मतदाता उप्र के चुनाव नतीजों को सर्वाधिक प्रभावित करेगा। मुस्लिम मतदाता लगभग अभी से यह मन बनाकर चल रहा है कि जो उम्मीदवार जहां पर भाजपा को हराने की क्षमता रखता है वहां पर मुस्लिम मतदाता उसी प्रत्याशी को वोट करेगा। दूसरी ओर हर बार की तरह कुछ नयी पार्टियां भी इस चुनावी दंगल में कूदने के लिए अभी से तैयारी कर रही हैं। हैदराबाद में औवेसी बंधुओं की पार्टी भी अबकी बार पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरने जा रही है। इससे कुछ हद तक मुस्लिम मतों का विभाजन हो सकता है। प्रदेश की राजनीति में जब- जब मुस्लिम मतों का बिखराव होता है कुछ सीमा तक भाजपा को लाभ मिलता है।
बिहार की तरह उप्र भाजपा व केंदीय नेतृत्व के लिए एक बेहद कड़ी चुनौती बनने जा रहा है। यहां पर पार्टी में बढ़ रहा अलगाव व निराशावाद तथा भाजपा सांसदों का रवैया भी पार्टी के लिए बेहद चिंताजनक परिस्थितियां पैदाकर रहा है। कुछ भाजपा संासद तो काफी अच्छा काम कर रहे हैं तथा जनता के बीच दिखलाई भी पड़ रहे हैं वहीं कुछ अभी भी अहंकार में डूबे हैं तथा लोकप्रियता बटोरने के लिए अनाप -शनाप बयानबाजी भी कर रहे हैं जिसके कारण बीच में मोदी सरकार का विकास का रथ गड़बड़ा भी गया था। हालांकि केंद्रीय नेतृत्व के कड़े तेवरों के बाद अब सांसदों व नेताओं की ओर से की जा रही अनर्गल बयानबाजी कुछ थमी है। उप्र में भाजप के पास अभी भी एक सबसे बड़ी चुनौती यह है कि प्रदेश में भाजपा किसी को अपना नेता चुने या मोदी के विकास के नारे व चेहरे के साथ ही चुनावी मैदान में उतरा जाये।
भाजपा को लोकसभा चुनावों के बाद जिन प्रांतों में अब तक सफलता मिली हैं वहां पर पीएम मोदी के नाम पर ही सफलता मिली है जबकि दिल्ली में अंतिम क्षणों में किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाकर भाजपा अपनी गलती की सजा भुगत चुकी है। इसलिए भाजपा दिल्ली की गलती को यूपी में नहीं दोहराना चाहेगी। उप्र विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच दलित चेहरे के साथ चुनावी मैदान में उतरने की रणनीति पर भी मंथन शुरू हो गया है। साथ ही दलित – सवर्ण गठजोड़ बनाने की भी पैरवी चल रही है। पूर्वाचल से पश्चिमी उप्र तक पार्टी व संघ परिवार ने एक ऐसे चेहरें की खोज शुरू की है जिससे एक तीर से कई निशाने साधे जा सकें। पासी, बाल्मीकि,धोबी, खटिक और नाई समेत दर्जनभर जातियों को भाजपा के साथ जोड़ना एक बड़ी चुनौती है।भाजपा के लिए पंचायत चुनाव आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के लिए एक आधार बनने जा रहा है। पंचायत चुनावों से ही भाजपा अपना जातिगत गणित सुधारने की जुगत में जुट गया है।
प्रदेश में मिशन 2017 की सफलता के लिए भाजपा ने अपने सांसदों व कायकर्ताओं के पेंच कसने प्रारम्भ कर दिये हैं। पीएम मोदी की भीषण गर्मी में होन जा रही मथुरा रैली की सफलता से जहां स्थानीय सांसदों की लोकप्रियता के ग्राफ का पता चल सकेगा वहीं भीड़ के हिसाब से आगामी विधानसभा चुनावों के लिए टिकट पाने योग्य लोगों की तलाश भी की जा सकेगी। पीएम मोदी की मथुरा रैली की सफलता व असफलता प्रदेश भाजपा के लिए एक संकेत देगी। इस रैली के बाद प्रदेश भाजपा प्रदेशभर में वयापक महासंपर्क अभियान भी चलाने जा रही है। वहीं अब अवकाश के दनों में सांसदों को जनता के बीच रहकर प्रधानमंत्री मोदी की योजनाओं की जानकारी जनतातक पहुचानें व पीएम मोदी के सपनों को पूरा करने की जिम्मेदारी भी है। वैसे भी विरोधी दलों के नेता आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा सांसदोें से प्रदेश को निराशा हाथ लगी है जबकि वास्तविकता यह नहीं है। भाजपा के कई सांसद अब जनता के बीच रहकर काम कर रहे हैं। राजग सरकार की कई पेंशन और बीमा योजनायें आगामी चुनावों में गेमचेंजर भी साबित हो सकती है।
भाजपा का आगामी चुनावों में सीधा मुकाबला सपा से होगा वहीं बसपा और कांग्रेस को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि पीएम मोदी ने सरकार के एक साल पूरा होने पर जश्न की शुरूआत यूपी से की है। अभी कई सर्वेक्षणों में उप्र में पीएम मोदी व केंद्र सरकार की लोकप्रियता बरकरार है तथा यह 74 प्रतिशत तक है। यदि भाजपा कार्यकर्ता महासंपर्क अभियान सफलतापूर्वक संचािलत करते हैं तो मिशन- 2017 अपना सफर तय भी कर सकता है लेकिन चुनौतियां व उम्मीदें बरकरार हैं ।
–– मृत्युंजय दीक्षित
अच्छा लेख. चुनाव जीतना कभी आसान नहीं होता. उत्तर प्रदेश जैसे राज्य का विधानसभा चुनाव तो सबसे ज्यादा कठिन माना गया है. जनता के मूड का कुछ पता नहीं चलता. अगर भाजपा को चुनाव जीतना है तो कार्यकर्ताओं को आपसी मतभेद भूलकर कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. उससे पहले बिहार के चुनाव में पता चल जायेगा कि भाजपा का भविष्य क्या है.