विज्ञान के चमत्कार
ये उस वकत की बात है जब कंप्यूटर इस्तमाल में नहीं आये थे | सविता देवी की बेटी पूनम की शादी विदेश में हुई थी| उसने अपनी लाड़ली को इतनी दूर ब्याहने के बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था पर, जैसे कहते हैं न! यह सब संयोग की बात होती है। इस पर किसी का बस नहीं चलता। इसी तरह पूनम की शादी भी सात समुद्र पार हो गई और ममता आंसू बहाती रह गयी| पूरे 15 साल हो गए थे, अपने जिगर के टुकड़े को ससुराल भेजे हुए| पर गृहस्थी की ज़िम्मेदारी और ससुराल की खिदमत में बेटी को वतन वापिस आने का समय ही नहीं मिला| सविता देवी को नाती-नातिन के जन्म की खबर भी फ़ोन पर ही मिली थी । पूनम द्वारा भेजी गई उनकी तस्वीरों को ही गले लगा कर खुश हो लेती । पूनम महीने में कभी कभार , चिठ्ठी के ज़रिए जा टेलीफ़ोन के ज़रिये अपनी कुशल-मंगल देती, तो माँ के दिल को ठंडक मिल जाया करती ।
सविता देवी की दो औलादें एक बेटा और बेटी थी । बेटे की भी शादी हो चुकी थी। भरा-पूरा परिवार था उसका। वैसे तो पोते-पोतियों के संग दिल लगाये रखती, पर बेटी को याद करके उदास हो जाती। वह आंखों से दूर, सात समंदर पार जो रहती थी! अपने दिल के टुकड़े को विदेश विवाह कर खुद को कोसती, “काहे बिहाई बिदेस” गीत सुन कर ज़ार-ज़ार रो पड़ती | बेटी और नाती-नातिन की तस्वीरों को घंटों निहारती, चूमती, सीने से लगाती । पोती को गले लगा कहती ” चिड़िया रे चिड़िया तुझे भी इक दिन उड़ जाना | फिर बेटी की प्यार भरी चिट्ठियों को बार-बार पढ़ती । एक चिठ्ठी में लिखा था ” माँ आज फिर चिठ्ठी लिखने को देर हो गयी। अपनी इस बेटी को माफ़ कर देना, यही तो मजबूरी है हम बेटियों की, एक दिन हमें माता-पिता का घर छोड़ जाना पड़ता है। हम बेटियां अपने ससुराल में अपनी दुनिया बनाने के लिए अपना सारा जीवन लगा देती हैं। यही तो आप ने भी किया ,नानी ,दादी ने भी किया और आगे आपकी नाती और पोती भी यही करेंगी । मैं भी अपनी गृहस्थी में इसी तरह से व्यस्त हो गई| सुबह एक फैक्टरी में काम करने जाती हूं। आपके दामाद भी दिन-रात काम पर रहते हैं, बच्चे स्कूल जाते हैं। उनकी परवरिश और सास-ससुर की सेवा में कब दिन से कब रात हो जाती है पता ही नहीं चलता, पर माँ इस का ये मतलब नहीं, कि मैं आप को याद नहीं करती। आपके दिल का टुकड़ा सदा आपको मिलने को तड़पता है चाहे सात समुद्रों की दूरी है, पर दिल से आप दूर नहीं।” सविता देवी चिठ्ठी को पढ़कर आँखे नम करके कहती, ”बिटिया तू अपने घर में सुखी रहे खुश रहे मुझे और क्या चाहिए?”
कुछ और समय बीता, विज्ञान ने और तरक्की कर ली। इंटरनेट का ज़माना आ गया। घर-घर में कंप्यूटर आ गए। सब का जीवन कंप्यूटर से जुड़ गया | एक दिन सविता देवी के पोता और पोती उसके पास आये। गले में बाहें डाल कर दादी को कंप्यूटर रूम में ले गए। उन्होंने दादी के लिए कोई सरप्राइज़ प्लैन किया था। पोती नेहा ने दादी की आँखों पर हाथ रख दिए और कंप्यूटर ऑन करके दादी की आँखों से हाथ हटाये तो सामने विडिओ कॉल के ज़रिये, कंप्यूटर पर अपनी बेटी पूनम को देख हैरान रह गई। बरसों से बिछुड़ी हुई बेटी पूनम को सामने देख ख़ुशी से झूम उठी और बोली ” बेटी मैं तो तुझे देख सकती हूं। तू तो मेरे सामने है, ये कैसा चमत्कार है! माँ बेटी दोनों की आँखों से ख़ुशी के आंसू बहने लगे । पोती नेहा दादी के गले में बाहें डाल कर कहने लगी” दादी माँ अब उदास नहीं होना। अब आप जब जी चाहे बुआ से मिल सकते है ।” दोनों परिवार एक दूसरे से मिल कर खुश हुए । वह पूनम के सारे परिवार से मिली। अपनी बेटी ,दामाद, नाती-नातिन से ढेरों बातें की। बेटी ने अपना सारा घर दिखाया । अब जब जी चाहे अपनी बेटी को देख कर ,सविता देवी खुश रहने लगी और साइंस को शुक्रिया करती हुए कहती ” बहुत करामाती है ये विज्ञान, इस ने सात समुद्रों की दूरी को खत्म कर दिया है। इसके नित नए अद्भुत आविष्कारों ने इंसान के जीवन को कितना सरल, सुखद और सुन्दर बना दिया है |”
वो दिन तो बहुत खूबसूरत था जब पूनम ने माँ को बताया, कि वो अपने परिवार समेत इंडिया आ रही है ।
बहुत बढ़िया लघु कथा के लिए आभार वक्त बदला वक्त की नज़ाकत बदली लोगों के साओच का नज़रिया बदला विज्ञान ने दूरी को नज़दीकी मे बदल दिया
आदरणीय भाई साहब लघु कथा पसंद करने के लिए आप का बहुत शुक्रिया दरअसल ये कहानी विदेश में बिहाई हर लड़की की है जो अपने माता पिता से बिछड़ने का दर्द सहती है, और माता पिता भी बिटिया से दूरी सहन करते हुए आंसू बहाते है । कुछ समय पहले मोबाइल और कंप्यूटर की इतनी सहूलत नहीं होती थी, खत जा फ़ोन के जरिये ही बेटी की माता पिता से बात चीत हो पाती थी । पर अब मोबाइल और कंप्यूटर ने इन दूरिओं को खत्म कर दिया है , बात चीत करना और विडिओ काल के जरिए एक दूसरे को देखना कितना आसान हो गया है । इतने त्वरित व हार्दिक कामेंट के लिए ह्रदय से शुक्रिया और धन्यवाद भाई साहब ।
मंजीत , बहुत अच्छी लघु कथा है , विगिआन ने हमारे लिए कितनी सहुलतें मुहया करवा दी हैं . यह कथा पड़ कर मन पर्सन हो गिया .
आदरणीय भाई साहब कहानी पसंद करने के लिए बहुत शुक्रिया इस कहानी को लिखने के पीछे मेरा मनोरथ विज्ञानं को सलाम करना है | आप को याद है जब मेरी ये कहानी रेडियो पर पड़ी गयी थी , तो जाने कितनी ही बेटीआं भावुक हो गयी थी| और उन्हें वो समय याद आ गया था, जब वो अपने मायके खत लिखती थी, तो खत पहुँचने को और माता पिता के खत के इन्जार में सात- सात दिन लग जाते थे| और वो कितनी ख़ुशी से बता रहीं थी की अब मोबाइल और कंप्यूटर के जरिये झट से बात चीत कर लेती है उनको देख लेती है । एक लेखक को हार्दिक ख़ुशी तब होती है जब उसकी रचना पाठको के दिलों को छु लेती है और उसके रचना लिखने का मनोरथ पूरा होता है । अतिसुन्दर कामेंट के लिए ह्रदय से शुक्रिया और धन्यवाद भाई साहब ।
बहुत अच्छी लघुकथा !
आदरणीय भाई साहब लघु कथा पसंद करने के लिए आप का बहुत शुक्रिया आप जैसे महान विद्वान से होंसला अफजाई पा कर हमें और रचनाए लिखने में हिम्मत मिलती है | इतने त्वरित व हार्दिक कामेंट के लिए ह्रदय से शुक्रिया और धन्यवाद भाई साहब ।