ताजी खबर : ताजी कुंडलिया
गरमी का पारा गया,सीमा को कर पार।
मरे सैकड़ों आदमी,चहुँ दिश हाहाकार।
चहुँ दिश हाहाकार,हाल हैं खस्ता सबके।
पशु-पक्षी-इंसान,हार माने हैं कब के।
कह ‘पूतू’ कविराय,न बरते थोड़ी नरमी।
करती अत्याचार,दिनोदिन जालिम गरमी।।
पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’
वाह वाह ! गरमी की विभीषिका को व्यक्त करती बेहतर कुंडली।