कहानी

मुलाकात के बाद

कितनी मुश्किल से मनाया था उसको मिलने को, एक वक़्त था एक दिन भी बिना मिले रह नही पाती थी (बस यही कह देती थी मेरी गली का एक चक्कर लगा जाओ बाइक से) और इस बार मिन्नतें करनी पडी थी, ना जाने कितने वादे लिए उसने, ना जाने कितनी बार समय सीमा की गुहार की..

ये लडकियाँ जब जिन्दगी में होती हैं तब भी दर्द देती हैं, जब नहीं होती तब भी बेदर्दी होकर ता उम्र दर्द देती हैं. पहले सुबह उठते ही याद आता था उफ़ उसकी छुट्टी हो गयी होगी ट्यूशन से और भाग कर चन्नी की दुकान पर जा खड़ा होता था ब्रेड लेने के बहाने और अम्मा से रोजाना गालियाँ खाता था कि रोटी नही खायी जाती तेरे से, जो रोजाना यह मैदा उठा लाता है.

आज आई वोह, मैं एक घंटा पहले ही पहुँच गया था. देखना चाहता था अब कैसे लगती हैं वोह. १० साल हुए उसे देखे, पहचान भी पाऊँगा भी या नहीं? उसकी आँखे क्या आज भी वैसे ही चमक उठेंगी जैसे तब चमकती थी? क्या आज भी वोह गोलगप्पे खाने की जिद करेगी न्यू मार्किट में? सोचो में गम था कि घर से फ़ोन आ गया. सुनते सुनते अचानक लगा कोई हैं पीछे, जैसे मैंने मुड कर देखा. आहा ! नीले सूट में पहले से भी ज्यादा खूबसूरत. उफ़! उस वक़्त कितना अफ्सोस हुआ अपनी किस्मत पर मैं जानता हूँ या मेरा रब.

आर्किड रेस्त्रा की पहली मंजिल पर हम पहले भी घंटो बैठा करते थे, पर अब उसने कहा- नहीं, यही नीचे ही ठीक है. ऊपर तो, समझ आ गया मुझे वही उसका पराया होना, मेरी आँखे कुछ ढूढ़ रही थीं पर नही ढूढ़ पा रही थीं. क्या था जो छूट गया था? उसकी हंसी आज भी दिलकश थी पर उसमें खनक गायब थी. उसकी रंगत आज भी गुलाबी थी पर उसमें मेरा रंग नहीं था. उसकी महक आज भी मादक सी थी पर करीब आने को आमंत्रित नही कर रही थी.

पूरे बीस मिनट्स तक वोह मेरे साथ थी, न उसने ज्यादा कुछ बोला न मैंने कुछ ज्यादा पुछा. बस यही कि वक़्त कैसे गुजरता है? मैंने कहा गुजर ही रहा है बस तुम्हारे बिन उसने कहाँ वक़्त ही कहाँ मिलता है मुझे अब? देखो आज कितना मुश्किल से आई हूँ. सच है पुरुष वक़्त निकाल ही लेते हैं और स्त्रिया वक़्त काट लेती हैं.

सोचता था जब मिलेगी तो यह बात करूंगा, वोह बात करूंगा पर बात ही कुछ न हुयी और उसकी समय सीमा ख़तम हो गयी. एक महक जो मैंने कई बरसो से भीतर समाये था अपने आज वही छोड़ आया हूँ. वोह महक अब मेरी सी नही थी, मुझे जीनी होगी अब वोह महक सीने से लगाकर, जो कब से एक फ्रेम मैं जड़कर मेरे सिरहाने रखी है और मेरे साथ वाले बिस्तर पर सो जाती है… अक्सर उदास सी.

नीलिमा शर्मा (निविया)

नाम _नीलिमा शर्मा ( निविया ) जन्म - २ ६ सितम्बर शिक्षा _परास्नातक अर्थशास्त्र बी एड - देहरादून /दिल्ली निवास ,सी -2 जनकपुरी - , नयी दिल्ली 110058 प्रकाशित साँझा काव्य संग्रह - एक साँस मेरी , कस्तूरी , पग्दंदियाँ , शब्दों की चहल कदमी गुलमोहर , शुभमस्तु , धरती अपनी अपनी , आसमा अपना अपना , सपने अपने अपने , तुहिन , माँ की पुकार, कई वेब / प्रिंट पत्र पत्रिकाओ में कविताये / कहानिया प्रकाशित, 'मुट्ठी भर अक्षर' का सह संपादन

One thought on “मुलाकात के बाद

  • विजय कुमार सिंघल

    रोचक कहानी !

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